एक रास्ता जो पढ़ने-लिखने के बाद ...
एक रास्ता जो पढ़ने-लिखने के बाद ...
सुकन्या नाम भी अपने आप में अद्भुत व सुंदर है
अपितु सुंदर कन्या नहीं-नहीं साहब जरा ठहरिए,
बातों को देखिए अउर तनिक सुनिए।
हम किसी सुंदर कन्या की बात नहीं कह रहे हैं
हम तो सामान्य आप माफ कीजियेगा...
अपनी तरह दिखने वाली लड़की/कन्या की बात कह रहे है।।
खैर समस्या पुरानी है किंतु गंभीर है
आप गर बात समझे तो कथित तौर पर,
लिखना हमारा पूर्ण हैं अन्यथा हम तो वैसे भी फकीर हैं
आइये मिलते है नए अध्याय से
नई दृष्टि नए विचार से
गाँव में अम्मा कहती हैं ये लड़कियां बथुआ की तरह होती हैं
भाई मुद्दे की बात है अम्मा कहती हैं
सभ्यता की शुरुआत में हम साथ चले थे न
फिर तुम कैसे नई शिक्षा के चक्करों में पड़ गयी
कछु न रखा है इस शिक्षा मा, का करोगी इतना पढ़ लिख कर,
सुन लो बिटिया कलम नाही, बेलन चलाना हैं तोरा के
मैं स्वयं को अमुक व प्रबुद्ध दोनों बताती
न कुछ कहती न कुछ बता पाती
सिलसिला विवाह तक चलता आखिर मन है कितना अपनी करता
सब कहते घर के काम -काज ही काम आवेंगे
बी.एड तक कि शिक्षा वाली बहु को भी घर ही बिठावेंगे
सच पूछिये क्रोध कम आनंद ज्यादा आता
सबने कुछ पता हो न हो बी.एड. तक का पता होता
बहरहाल! अम्मा की भी कोई गलती नहीं
उन्हें उनके हिस्से की भी आजादी मिली नहीं
अम्मा कहती सदियाँ जाया करते हम खुद को तुम्हें गढ़ने में
और तुम खुद को ही भूल बैठी सिर्फ चंद किताबें पढ़ने में
फिर अम्मा हाथ पकड़कर समझाती
तू हर वक्त जिद पर क्यों बैठ जाती
मैं तुनककर कहती !फिर शिक्षा तुम भी क्यों न अपनाती
अम्मा समझाती-मन, वचन, कर्म अपनी जमीन पर ही थी, है, रहेगी.......
वास्तविक शिक्षा-दीक्षा संस्थागत संस्थाओं से
अधिक परिस्थितियों की घरेलू पाठशाला में हुई....
गांव व जमीन पर पढ़ी हर इबारत पक्की होती हैं...
यही पक्का रंग मनुष्य के हर परिस्थिति में खड़ा होना सिखाता है
अम्मा कहती यही तुझे बतलाती हूँ मैं
एक रास्ता जो पढ़ने-लिखने के बाद अपनी जमीन पर लौटना सिखाये...
उसी रास्ते की राह देखती हूँ मैं