एक ख़त चाय के नाम
एक ख़त चाय के नाम
कभी केटली से लुढ़कती हुई,
कभी कुल्लढ़ से छलकती हुई,
कभी छोटी सी दुकान में,
कभी चारमीनार में,
कभी स्टेशनों के बाज़ार में,
क्या कहूं तुम्हारे फ़साने,
तुम तो हर दिल में बसती हो,
दिन की शुरुआत तुम ही तो करती हो,
कभी अकेलेपन की साथी तुम,
कभी महफिलों में सजती हो,
कभी फिकी कभी मीठी
न जाने कितने रंग रूप रखती हो,
शाम के खूबसूरत नज़ारे और हाथों में
एक प्याली चाय के मज़े ही कुछ और हैं,
क्या कहूं कि तू कितने ही दिलों का सुकून है,
हर उम्र की साथी तुम,
जीवन में घुल जाती हो,
अकेलेपन में सुकून बहुत दे जाती हो,
अब तो जीवन का हिस्सा हो तुम,
मेरी डायनिंग टेबल का मान बढ़ाती हो,
कभी शरारती कभी मुस्कुराते हुए ख़ूब इठलाती हो,
खूबसूरत प्यालियों में सज़ कर तुम भी इतराती हो,
अपनी खुशबुओं से सबको ललचाती हो,
गपशप की साथी तुम,
अगर तुम ना हो साथ जिंदगी अधूरी सी लगती है,
क्या कहूं कुछ नहीं बहुत ही फिकी
सी लगती है,
हर कोई समय - समय पर अपनी राह बदल लेता है,
मुझे कभी-कभी नहीं कई बार अकेला कर देता है,
एक तुम ही हो जिसने हर पल साथ निभाया है
मेरी कल्पनाओं को ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,
इसी तरह तुम प्यालियों में सजती रहो और
जिंदगी में सब की अपनी खुशबुओं से रंग बिखेरती रहो,
मेरे सुख - दुख में हर पल साथ निभाना यूं ही
ताउम्र मेरे साथ चलती जाना यूं ही,
मेरे अकेलेपन की साथी एक प्याली चाय
आज तुम्हें दिल से धन्यवाद कहती हूं ।