एक चाँदनी रात
एक चाँदनी रात
ऑंख मिचौनी करते बादल,
चन्दा के संग खेलें बादल,
पानी लेकर आयें बादल,
झूम-झूम के जायें बादल ।
हवा चली मद भरी,
शीतलता से झुकी-झुकी,
जल कणों से भरी-भरी,
चन्दा के संग खिली-खिली ।
रूई से उड़ते बादल घूमें,
हवा का स्पर्श सुहाना,
मन में कैसा उन्माद जगाए,
कितना सुन्दर जीवन है ।
हम ही भूले रहते,
अपने में खोए रहते,
ये दो पल भी नहीं पाते,
काम में उलझे रहते ।
कितना हलका मन है, कितना सुखद,
कितना शीतल स्पर्श पवन का,
अभी तक अनजाना था,
अवकाश ही कहाँ था ।
कभी बैठ प्रकृति को निहारा नहीं,
दिन ऐसे ही बीत गए,
यह दु:ख सुख से उपर,
अलग ही दुनिया है ।
अपने में अलबेली,
प्रकृति में सौन्दर्य है, सुषमा है,
देखने को अवकाश चाहिए,
मन खाली चाहिए ।