दरिंदगी की रूह कांप जाए
दरिंदगी की रूह कांप जाए
मस्त मस्त चल रही थी पवन,
आस-पास हरियाली थी नीला नीला था गगन,
अपनी रफ्तार में मगन थे वह घोटक,
क्या पता था उन्हें घुमाना होगा ऐसा घातक,
एक नन्ही सी थी वो जान,
मन में बहुत थे उसके भी अरमान,
उसे मालूम भी नहीं होता होता क्या है सम्मान,
पर यह समझ रही थी कि हो रहा है उसका अपमान,
ना जाने कैसे घर की राह गयी वो भटक,
हर उस हैवानियत के पल उसकी साँसे गयी अटक,
नासमझ ने पेट भरने को जो परोसा वो खाया,
उन दरिंदों को उसे नशा कराते जरा ना तरस आया,
हर उस पल वो बेकदर होगी घबराई,
हर एक चीख में मां को आवाज लगाई,
सुना है कोई एक नहीं दो चार थे वो हैवान,
जन्म इंसान का लेकर थे वो शैतान,
बहुत सहम सी गई थी वो बेचारी,
जब दरिंदगी हुई उसके साथ बारी बारी,
समझ गयी थी वो की अब ना बच पाएगी,
आवाज भी नहीं निकल रही थी तो पापा को कैसे बुलाएगी,
इतने हाथ पांव मारने से हो गई वो चूर-चूर,
हर दूसरे लम्हें होती गई साॅंसे दूर-दूर,
हर सिसकियों में उसने अपनी मां को पुकारा था,
आखरी सांस तक उसने अपने पापा को बुलाया था,
अब वह बहुत हो गई थी शांति,
खत्म उसकी चीखें हुई पर वही हो रही थी आरती,
पर अब वो भगवान कैसे पवित्र हुआ,
जिसके सामने तार-तार उसका चरित्र हुआ,
उन्हें मतलब ना था मंदिर के भगवान से,
बस खेलना था उन्हें उस नादान से,
आज सही मायने में कलयुग है आ गया,
उस पत्थर की मूरत के सामने यह सब हो गया,
सारी दुनिया के सामने जब यह आई हकीकत,
सब ने अलग अलग दे दिए अपने मत,
किसी ने इसे मजहब की लड़ाई बना डाला,
तो किसी ने राजनीति इस पर दांव खेल डाला,
यह दुनिया के सब दिखावी ढकोसले हैं,
नेहा क्या तो कहना यह सब चोचले हैं,
जो बिछड़ गई उस मां कि वह संतान कहां से आएगी,
बाबुल की लाडली अब उसके कंधे पर ना बैठ पाएगी,
सबको मिलकर देश का कानून बदलना होगा,
हर हैवान को सजा से बेकदर तड़पना होगा,
उम्रकैद और फांसी की सजा से कुछ ना होगा,
दरिंदगी की रूह कांप जाए ऐसा उसे दर्द देना होगा...
