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Shalini Shalu

Others

2.5  

Shalini Shalu

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दर्द

दर्द

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एक दीवाने का दर्द, दीवाना ही समझता है,
वरना; यूं तो हर कोई हमें पागल समझता है।

कैसे कहूँ, हर दर्द का दर्द ही फरिश्ता है,
ये ज़माना तो पल भर का गुलिस्तां है॥

लफ्ज़ों के मायने तो गूंगा ही समझा है,
आजकल बादल भी गरज के कहाँ बरसता है।

मेरा इस बेवफा जमाने से क्या रिश्ता है,
ये ज़माना तो हर गिरे हुए पे हँसता है॥

वो पागल दुःखों को ही तक़दीर समझता है,
हर दीवाना, खुद को फ़कीर समझता है।

पथ में कोई पागल, तो कोई राहगीर समझता है,
है कोई खुदा! जो मेरे दर्द की तासीर समझता है॥


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