दाता ! कमाल के हो तुम
दाता ! कमाल के हो तुम
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चलते पथधारों की मशाल हो तुम...
भावनाओं की दहलीज मेंं
कमाल हो तुम
दाता...मशाल हो तुम
जनम मरण की मध्य किरण तुम
बिनु कहांं उजियारा
कविता तुम्हारे जो घट घट विराजे
पढ़ सके जो, तुम्हारा ।
सुर्खियों के बंद जुबां पर
सदा गुम सुम
दाता... कमाल के तुम..
चलते पथधारों की
विनय ईर्षा के मध्य नजर तुम
शीतल ज्ञान की छाया
विवाद ढेरोंं पर महा निनाद तुम
(हम)कैसे जाने तेरी माया ??
मंजिलेंं हमारी हो एक ही
जैसे ओम् ओम् ।।
दाता... हो कमाल के तुम
चलते पथधारों की...
