चार कदम
चार कदम
सपना क्या आंख दिखाता है, क्या दुनिया उसे देखने देती है
अगर हक से छीन ना लो, न चाह भी हो वापस मांग लेती है
गीले शिकवे मिटाओ, गतिपूर्ण दौड़ो, या फिर सहूं मजबूरियां
क्या क्या गंवा बैठे है हम? आप दोषी बना रहे है ये दूरियां
किस्मत पर भरोसा, दुनिया को देखकर हम आस छोड़ दिए
जिन रहो पर चलना था, सपना! आंसू पोंछ दिशा मोड़ दिए
हक नहीं बढ़ाने का, गिराना कौन सा हक है? आप को भैया
क्या क्या गंवा बैठे है हम? आप दोषी बना रहे है ये दूरियां
समझ रहे है सूझबूझ, नौटंकी के चयनकर्ता कभी लगते है
बातों से जैसे कोई लगते अपने, जरूरी होने पर भागते है
देह इतना हल्का मत समझो, टूटे है मां की कई चूड़ियां
क्या क्या गंवा बैठे है हम? आप दोषी बना रहे है ये दूरियां
खल छोड़ दो, अच्छाई क्यों, आपसी क्या कोई? मतभेद है
वक्त ख़तम नहीं, बस पार करने वाली हुई थोड़ी सी ये देर है
सब्र करो, हर फल फलता है, यह प्रकृति की ही है मंजूरियां
क्या क्या गंवा बैठे है हम? आपका दोषी बना रहे है दूरियां
