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sushant mukhi

Others

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sushant mukhi

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" बिखरी ज़िंदगी "

" बिखरी ज़िंदगी "

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थोड़ी बिखरी सी है ज़िन्दगी आजकल 

मैं उसे समटने में लगा हूँ 

बहुत देर तक बैठा बेसुध हो कर

अब उठकर फिर चल पड़ा हूँ।


हाँ, मालूम तो नहीं है ठीक से मुझे

कि किस राह पर निकला हूँ 

पर ये जान लो गिरने के बाद 

अब जा कर मैं संभला हूँ।


नज़रों को कर के सीधा

धीरे धीरे बढ़ने लगा हूँ

थोड़ी बिखरी सी है ज़िन्दगी आजकल

मैं उसे समेटने में लगा हूँ।


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