बीमार लड़का
बीमार लड़का
मै एक ऐसे लड़के को जानता हूँ
जो प्रेम कविताऐं चुराता है।
उसने माना है प्रेम की हर कविता पर
कवि से पहले पाठक का हक है,
वो चुराता है कवियो की प्रेम कविताऐं
बेहद सावधानी से वो उस कविता
के बीच बो देता है व्यक्तिगत
दर्द ,विरह और ऩा जीने आकांक्षा
प्रेमिका को लौट आने की जिद
तड़प मलाल के आकंठ मे डूबा स्वंय
नीचे दिऐ कवि का नाम हटाकर
भेज देता है अपनी प्रे़यसी को।
मै एक ऐसे लड़के को जानता हूँ
जो बेवजह हँसता है
खूब हँसता है।
शायद जिस पल वो हँसना छोड़ दे।
वो रो देगा ,उसकी रूदन सृष्टि अभिशप्त कर देगी।
मैने उसे घंटो एकटक चीजो को घूरते देखा है
और फिर यह कहते की ये भी चला जाऐगा।
वो जेठ की दोपहरी मे धुप मे जाकर
सुरज को घुरने लगता है।
कहता है वो देवताओ से सवाल करता है
मै एक ऐसे लड़के को जानता हूँ
जो दिन जी'ता है रात के इंतजार मे
और शब आफताब के भरोसे काट देता है
वो अपनी डायरी मे लिखता है
कई सारी कविताऐ, एंकात मे
वो सबसे छुपाकर रखता है
कहता है लोग जान गऐ तो
वो अपने प्रेम को दगा दे जाऐगा।
वो देवताओ से सवाल नही कर पाऐगा
वो किसी से बाते नही करता।
शहर की ट्रैफिक उसे बेहद पसंद है
कहता है वो मै हूँ।
उलझा उलझा।
उसे चाँद तारे से चिढ होती है
सब उसपर हक जमाते है
वो बादल के फांहो को अपना मानता है
सब कहते है वो बीमार है
एक रात वो एक पंक्ति मे रात काट गया।
"वो उससे प्रेम करती है न!"
"समझो ना"
जोर से हँसकर कहता है "भयानक सपना था"
मै एक कलाकार लड़के को जानता हूँ
जिसके महज किरदार बदलते रहते है।
मै सबसे सच्चे चोर को जानता हूँ
जिसके कंधो पर प्रेम के कोंपल उगते है
जिसकी मासूम आँखो को देखकर सुरज सहम जाता है
जिसके मौन मे ना जाने कितने शोर होते है
जिसके एक आवाज मे कान्हा की बांसूरी बसती है
जिसके स्पर्श से मिट्टी चंदन मे ढल जाता है
मै एक ऐसे लड़के को जानता हूँ।
जो किसी को अपने करीब नही आने देता।
केवल मुझसे बाते करता है।
कहता है मै उसे बीमार नही मानता।
