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Rahul Rajesh

Others

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Rahul Rajesh

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बहुत पढ़ लेने से

बहुत पढ़ लेने से

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बहुत पढ़ लेने से

सबकुछ पढ़ा-पढ़ा लगता है

हर बात जानी-सुनी लगती है

कुछ भी नया नहीं लगता

कुछ भी नया लिखा नहीं जाता

 

बहुत पढ़ लेने से

मन उचाट हो जाता है

आदमी निचाट हो जाता है

संसार सपाट लगने लगता है

देह से पहले दिमाग बूढ़ा हो जाता है

बचपन भी जल्दी छूट जाता है

 

बहुत पढ़ लेने से

और कुछ पढ़ा नहीं जाता

नया कुछ गढ़ा नहीं जाता

कोई रहस्य, रहस्य नहीं रह जाता

कोई कविता, कविता नहीं रह जाती

 

बहुत पढ़ लेने से

कल्पना का आकाश छिन जाता है

कुछ कहना बेमानी हो जाता है

कुछ सोचना बदगुमानी हो जाता है

 

बहुत पढ़ लेने से

आदमी मौलिक नहीं रह जाता

और कवि तो बिल्कुल ही

अमौलिक हो जाता है!


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