भारत एक खोज
भारत एक खोज
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कुछ दिखा बदलाव, नव वर्ष में....
सब वैसा का वैसा ही है,
सूरज आज भी ढल जाता है,
और चन्द्रमा अब तक जवां है,
प्रकृति अपने नियमों पर,
अनवरत चलती है।
पर हम मानव का क्या???
परिवर्तन के नाम पर,
पश्चिमी आवरण पहन,
क्या से, क्या होते जा रहे,
बदलाव दिखता है,
रहन-सहन में,खान-पान में,
व्यवहार व संस्कार में,
सबकुछ बदल गया,
विगत कई वर्षो में,
न जाने कौन सा बीज पड़ा था,
भारत के इस माटी में,
हर जगह बबूल उग आया,
भारत माँ की छाती पर,
चलो, चलें पुनः वापस चलते है,
भारत की खोज में,
गंगा की जलधारा में,
लहलहाते फसलों में,
सेना के जज्बातों में,
बुजुर्गों के आस भरी, उन आँखों मे,
भारत हमे यही दिखेगा,
भारत हमे यही मिलेगा,
माँ भारती के आँचल में...
