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Sweta Sharma

Others

4.3  

Sweta Sharma

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बहाने

बहाने

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यूं सूरज ढल रहा है, चांद के बहाने

रात भर इस संग कौन जागेगा, रात क्या जाने

है कौन छेड़ता ख्वाबें के यूं ताने बाने

मैं खोज रहा खुद को तारों में चांद के बहाने।


हे पीर बहुत ही दुनिया में पर नहीं मैं रोता

आखिर बाणो की शैय्या पर हर रोज हूं सोता

शीत तपीश में नहीं मैं अपना संबल खोता

इस रजनी को काट रहा यह समय सरोता।


हो जाऊं तुम मौन नहीं मैं भी कुछ बोलूं

आंखों ही आंखों में भ्रम का परदा खोलूं

गर जीवन बना तराजू, तो सुख दुख मैं तोंलू

एक दलील के उपजे हैं कितने ही पहलू।


है बंद अक्षर देखो पर अश्क बोलते हैं

खानाबदोश सी रात में जुगनू डोलते हैं

जल कर खुद वो नयी राह को खोलते हैं

आगे -बढ़ो आगे -बढ़ो दीपक बोलते हैं।



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