“बेटी”
“बेटी”
गंगा की धारा-सी, बहती हैं बेटियाँ
समुद्र हृदय रख, सब सहती हैं बेटियाँ
काल से लड़ जाएँ जो, ऐसी होती हैं बेटियाँ
बेटों की कमी को भी, भरती हैं बेटियाँ
लक्ष्मी, फूले जैसी, होती हैं बेटियाँ
दिल हो या हो जंग, जीत लेती हैं बेटियाँ
सरहदों पर सिर जो, कटाती हैं बेटियाँ
बड़ों के आगे सिर वही, झुकाती हैं बेटियाँ
मुस्कुराहटों से गम, छुपाती हैं बेटियाँ
वेदों की भाषा को भी, सिखाती हैं बेटियाँ
संस्कृति, संस्कारों का, मान है अभिमान हैं
भारत की विश्व में, पहचान हैं ये बेटियाँ
माँ की सूनी कोख का, सम्मान है बेटियाँ
भाई की कलाई की, जान है ये बेटियाँ
मांग में भर लाल रंग, सजती हैं बेटियाँ
नंगे पाँव मन्नतें, भी माँगती है बेटियाँ
धरा से आकाश तक, रहती हैं बेटियाँ
दुर्गा की स्तुति में सब, कहती हैं बेटियाँ
ये जान लो कि, विश्व तुमसे चलेगा नहीं
माँ-बाप के अपमान को, न सहती ये बेटियाँ
बाप का फ़र्ज़ भी, निभाती हैं बेटियाँ
तिरंगे को विश्व में, फहराती हैं बेटियाँ
चूल्हा-चौका करती, पेट भरती हैं बेटियाँ
फिर क्यों उसी में, झोंकी जाती हैं बेटियाँ
सवाल कर सको तो, खुद से कर लेना अभी
जननी का जन्म न हो, तो क्या तुम हो कहीं
क्यों हर तरफ से आता ये, इक राग है
बेटी का जन्म आज भी क्यों एक सवाल है
चुपके से सहती, न कहती ये बेटियाँ
जन्म दो मुझे, बस ये कहती हैं बेटियाँ।
