बेचैनी
बेचैनी
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अपने ज़हन से आज फिर
उसकी तस्वीर हटा रहा हूं,
जैसे बुझी राख से ये सिगरेट
जला रहा हूं,
वो तो मशगूल है अपनी
आवारा मस्तियों में,
वो जब जब गिर रही है
मैं संभालने जा रहा हूं,
वो जानती है मैं रहूँगा
जब कोई ना होगा साथ
उसके,
वो हँसकर कह रही है
मैं उससे उसका लग रहा हूं,
अजीब बेचैनी है आज
मेरे अंदर फिर यही कि,
वो दूर जा रही है मुझसे
या मैं करीब जा रहा हूं।