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Vaishnavi Pokale

Others

5.0  

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बचपन

बचपन

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एक पड़ाव जीवन का 

जहाँ थी शीघ्रता बड़े होने की 

प्यारा सा चेहरा था 

नादान सी हँसी थी।


आज़ादी पंछियों सी थी  

अज्ञान पर मासूम सा दिल था  

हँसता-खेलता बस वक्त बिताना था 

न जाने कहाँ खो गए वे दिन।


न कभी हारने का डर 

न कभी जीतने का गुरुर 

भोले-भाले हमेशा होते थे बेक़सूर।


नन्हे से थे 

खेलते-फिरते थे 

न कभी कुछ पाने हेतु 

कष्ट करने थे

बस अपने आपको जीना था।


तितलियों से रंगीन थे 

शेर से बहादुर 

अपने आप को समझते थे 

सागर से विशाल ह्रदय के थे 

जल से निर्मल थे 

न जाने कहाँ खो गए वे दिन।


सदा माँ के आँचल में खेलते थे 

पिता के कंधो पर बैठ 

अपने आप को दुनिया से

ऊँचा समझते थे।

 

ऐ जिंदगी बड़ी हसीन है तू 

दिया तो बहुत है तुमने 

पर मेरा मनोहारी

बचपन ले गई है तू।


आज यदि खो गया है मेरा बचपन 

फिर भी मौजूद है मेरा बचपना 

जो दिलाता है याद 

उन दिनों की जो 

न जाने कहाँ खो गए हैं।


ऐ मेरी जिंदगी 

पूरी कर देना

एक ख्वाहिश मेरी 

बस एक ख्वाहिश।

 

अगर हो सके तो 

कब्र पर मेरे नैना बंद होने से पहले 

मुझे मेरा नटखट बचपन लौटा देना 

मेरा नटखट सा बचपन मुझे लौटा देना।


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