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Mukesh Kumar Sonkar

Others

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Mukesh Kumar Sonkar

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बचपन

बचपन

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बचपन जीवन के हर पल से सुहाना होता है,

न कोई चिंता न फिकर बस खेलना खाना होता है।

जी लो इस खूबसूरत लम्हें को जी भर के,

एक बार बीत जाए तो ये लौट कहां पाता है।

बचपन की हर एक बात तब यादें बन जाती है,

इन सुहानी यादों को याद करके आंखें भी भर जाती है।

जीवन के इन हसीन पलों में इंसान खूब मस्ती से जीता है,

बचपन बीत जाने के बाद तो बस संघर्ष के कड़वे घूंट पीता है।

बचपन के वो क्या हसीन लम्हें थे कैसे सुंदर वो पल थे,

न थी कोई टेंशन न किसी प्रकार के माथे में बल थे।

अब तो बचपन बीत चुका है बस यादें बाकी रह गई हैं,

याद में उस सुनहरे दौर के आंखों में अश्कें रह गईं हैं।

काश वो दिन फिर आ जाते हम कितने खुश हो जाते,

सारे दुख और चिंताएं छोड़ एक बार फिर से उधम मचाते।


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