बचपन
बचपन


बोलते थे झूठ फिर भी सच्चे थे हम,
ये उन दिनों की बात है जनाब जब
बच्चे थे हम..
न जाने कितनों की गोद में खेला और
न जाने किस-किस से मिले थे हम..
बिना बात के रोया करते थे, कोई जब
खिलौना दे दें तो अपने आप खुश हो
जाते थे हम ..
जब रोते थे तो न जाने कितनों की
बचकानी (बच्चों वाली हरकत)
हरकतों से चुप होते थे हम,
कोई हमारे लिए घोड़ा बनता तो कोई
उम्र में हमसे भी छोटा बन जाता था..
न कुछ पाने की आशा थी और न कुछ
खोने का ग़म था बस अपनी ही धुन में
हँसते-रोते थे हम...
याद है आज भी वो बचपन की अमीरी
जब बारिश के पानी मे हमारे भी
जहाज़(नाव) चला करते थे..
जहां चाहा वहां रोते थे, जहां चाहा
वहां हँसते
थे हम, अब मुस्कुराने के लिए तमीज़
चाहिये और रोने के लिए एकांत..
बचपन में पता नहीं कितने दोस्त बनाए,
कितनों के साथ खेला सब याद तो नहीं
पर बहुत मजेदार थे वो दिन..
हम दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी पर हर
किसी के पास समय हुआ करता था,
आज सभी के पास घड़ी है पर समय
किसी के पास नहीं ..
अब तो बस फोटो में ही दिखते है हम!!!