बचपन से पचपन की अनुभूतियां
बचपन से पचपन की अनुभूतियां
हर गम से बेगाना दुनियाँ
से अनजाना भेद भाव
जाती धर्म, वर्ग ,ऊँच नीच
से अलग सिर्फ वात्सल्य का
हठ हठी बचकाना।
कभी चाँद पाने की जिद्द
कभी माँ की लोरी ममता
का आँचल ही आशियाना।
बापू का काँधा दुनियाँ का
बड़ा सिंघासन अभिमान
का आसमान।
विद्यालय जाने के पर रोना
दुनिया सर पे उठा लेना
रूठना मान जाना पल भर
में ही धरती आकाश उठाना।
माँ बापू को जिद्द अच्छी लगती
बचपन की शरारते ही माँ बापू
के आशा विश्वास का खजाना।
बचपन जाने कब बीत गया
शरारते शोखियां जाने जाने कहाँ
खो गया जिंदगी में जाने कब सच्चाई
का सामना हो गया।
जिंदगी का कीमती दौर गुजर गया
अब बचपन का सफर पचपन में
पहुँच गया।
सिर्फ जिंदगी के गुजरे दौर की
खूबसूरत यादों की दौलत संग
रह गया।
जिम्मेदारियों का बोझ अधूरे सपनो को
पूरा करने करने का सौख अंधी दौड़
बचपन मे माँ बापू से करते जिद्द
अब बन चुके खुद माँ बाबू दादा दादी
नए जमाने के बच्चों की जिद्द पीढ़ी
परिवर्तन का धौंस।
बचपन से पचपन का सफर गुजर
गया जैसे बचपन सपना था पचपन
हकीकत चुनौती बन गया।
पचपन में वक्त नही जिम्मेदारी बहुत
बचपन मे वक्त बहुत जिंदगी मस्त
पचपन में हद हस्ती पहचान सम्मान
धन दौलत हो गया।
बचपन मे अमीरी गरीबी की चिंता
नही मां बापू का प्यार ही दौलत।
बचपन की अठखेलियाँ
माँ बापू की खुशियो
का खजाना।
कभी जिद्द से दुनियाँ सर
पे उठा लेना कभी छोटी
छोटी बातों पर भी मुस्कुराना।
बचपन की अठखेलियाँ याद
नही माँ बापू रिश्ते नातो की
खूबसूरत यादों का तराना।
दुख सुख अनुभव अनुभुति से
बिमुख चाहत के चरम का चाहना।
किसी भी हद से बचपन गुजर जाए
माँ बापू रिश्ते नातो को लुभाता हंसाता।
बचपन की अठखेलियों चर्चा
घर परिवार में खुशियों की वर्षा।
कभी वारिस की पानी मे भीगना
झिकना चाहने वालो को परेशान
करना।
बचपन की अठखेलियां घर आँगन
मन भावन पहेलियां घर परिवार का
परमेश्वर पुरस्कार खजाना।