बच्चे
बच्चे
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दुनिया की परवाह से अंजाने होके
अंतर्द्वंद को मारकर ये बेगाने होके
घर, स्कूल, रिश्ते सारे नाते तोड़कर
बच्चे करते है मन की दीवाने हो के
सैर-सपाटा, उछल-कूद में होते मग्न
अपनी ही दुनिया में है वो होते लग्न
परवाह कहाँ रहती है अपने कल की
बच्चे साथियों संग खेलते रहते मग्न।
