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Gaurav kumar

Others

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Gaurav kumar

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बाप के लिए एक बेटे के जज्बात

बाप के लिए एक बेटे के जज्बात

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पर वो मेरी हर ख्वाहिश को पूरा कर रहा था,

और मैं भी अब उसके लाड़-प्यार में अब ढ़लने लगा था,

घर से अब वो कब निकल ना जाए,

बस उसके क़दमों पर नजरें रखने लगा था,

मुद्दें तो हजार थे बाजार में उसके पास,

और कब ढल जायेगा सूरज उसको इसका इंतजार था,


और मैं भी दरवाजे की चौखट को ताकता रहता था,

जब होती थी दस्तक तो वोकर से झांकता रहता था,

तब देखकर उसकी शक्ल में दूर से चिल्लाता था,

इशारों से उसको अपने करीब बुलाता था,


वह भी छोड़-छाड़ के सबकुछ,

मुझे अपने सीने से लगाता था,

वह करतब दिखाता था,

मेरी एक मुस्कान के लिए,

कभी हाथी तो कभी घोड़ा बन जाता था,

और सो संकू रात भर सुकून से,

इसलिए पूरी रात एक करवट से गुजारता था,


पर वो बचपन शायद अब सो चूका था,

और मैं जवानी की देहलीज पर कदम रखने लगा था,

उसकी क़ुर्बानी को उसका फर्ज समझने लगा था,

चाहे वो फिर खुद बिना पंखें के सोना या मुझे हवा में सुलाना,

या फिर ईद का वो खुद पूराना कपड़ा पहनना,

और मुझे नए कपड़े पहनाना,


या फिर तपती बुखार में माथे पर ठंडी पट्टी रखना हो,

या फिर मेरी हर जिद के आगे झुक जाना,

वो बचपन था वो गुजर गया,

वो रिश्ता था और वो सिकुड़ गया,

और मैं उस क़ुर्बानी के बोझ को उठा नहीं पाया,


इसलिए मैं वो शहर कहीं दूर छोड़ आया,

नए शहर की हवा मुझे पे चढ़ने लगी थी,

अपने बाप की हर नसीहत मुझे बचपना लगने लगी थी,

काम जो मिल गया, पैसा जो आने लगा,

क्या जरूरत है बाप को ये सोच मुझे में पलने लगी थी,


और उधर मेरा बाप बैचेन था,

की कुछ रोज तो घर आजा बेटा,

बस यही था उसकी फरयाद में,

और मैं उससे हिसाब लेने लगा था,

जो दुनिया का कर्जदार बन चुका था,


क्या जरूरत है तुम्हें इतने पैसे की अब्बू,

अब ये सवाल करने लगा था,

अब घड़ी का कांटा फिर पलट चुका था,

कल तक मैं किसी का बेटा था,

आज किसी का बाप बन चुका था,


और हसरतों का स्वटर मैं भी बुनने लगा था,

कल क्या करेगा मेरा बेटा मैं भी यही सोचने लगा था,

दुनिया में ना उससे कोई आगे था,

ना कोई अपना था सब पराया था,

बस वही एक सपना था,


तब मुझ एक जज्बात उबलने लगा था,

जिस जज्बात से में हमेशा अनजान था,

की कल क्या गुजरी होगी मेरे बाप पे,

अब मुझे ये समझ आने लगा था,

खुदा की एक मूरत होता है बाप,

जिसे लफ्जों में ना भुना जाए,

और जो कलमों से ना लिखा जाए वो होता है बाप,


जो रोते हुए को हँसा दे,

और खुद को मजदूर बनाकर,

तुम्हें खड़ा कर दे वो होता है बाप।


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