बाप के लिए एक बेटे के जज्बात 2
बाप के लिए एक बेटे के जज्बात 2
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सुबह होने तक फिर गोद में खिलाता,
झूलों को हिलाता, फिर दिन में कमाता,
फिर शाम में चला आता,
कभी खुद से परेशां तो,
कभी दुनिया का सताया था,
एक बाप ही था जिसने मुझे रोते
हुए हँसाया था,
अल्फाज़ों से तो गूंगा था मैं,
पर वो मेरे इशारे समझ रहा था,
मैं खुद इस बात से हैरान हूँ आज,
की कल वो मुझ को किस तरह
पढ़ रहा था,
अब्बा तो छोड़ो यार अभी तो
आ भी निकला नहीं था,
पर वो मेरी हर ख़्वाहिश को
पूरा कर रहा था,
और मैं भी अब उसके लाड़-प्यार में
अब ढलने लगा था।