असल ज़िन्दगी
असल ज़िन्दगी
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छल, द्वेष, पाखंड जैसे शब्दों के मंत्र...
लोगों के मन में अब गूँजते हैं...
कैसे यहाँ अपना उल्लू सीधा किया जाए...
इसके लिए ये तंत्र बोझते हैं...
दोस्त, रिश्तेदार, प्रेमी और सगे-सम्बंधी...
सब काल्पनिक से अब लगते हैं...
किसे अपना कहा जाए...
यह कहने में अब होंठ काँपते हैं...
व्यवहारों का यहाँ अब अजब चलन हो गया है...
लोग सीरत से ज्यादा सूरत को पसंद करते है...
आलोचक को मारते हैं...
चापलूस पर मरते हैं...
यह दुनिया है...
ये दुनिया बड़ी विचित्र है...
विचित्र इसके लोग हैं...
विचित्र ही उनका व्यवहार है...
अब समझ में आता...
अपने स्वार्थ पूर्ति की विद्या में...
गिरगिट अब वो क्यों द्वितीय कहलाता...
