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KAVITA MUKESH

Others

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KAVITA MUKESH

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अंतर

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थक जाओगी

तुम एक दिन

लिपिस्टिक-पाउड़र से

तरह-तरह पोशाकों से

अगली पार्टी की चिंता से

विभिन्न कोनों में पोज देने से

जब दुखने लगे गाल तुम्हारे

बार-बार की बनावटी मुस्कुराहट से

तब मेरे पास आना


मैं दिखाऊंगी तुम्हे

वे औरतें

जो कभी नहीं थकती

वे जो रहती है मामूली कपड़ों में

वो भी मुश्किल से ही खरीद पाती है

घर खर्च के बाद

वे जो काली स्याह पड़ गई

कड़ी धूप में उठाकर पत्थर-रेती

वे जो आधे दिन की मजदूरी कटवा

सरकारी अस्पताल में इंतज़ार करती है


अपनी बारी का

बीमार बच्चों को दिखाने का

वे भी औरते है

इसी धरती की

चेहरा दमकता है उनका

श्रम के आत्मविश्वास से

वे खिलखिलाती है

पोज की चिंता किए बगैर

वे गाती है अपने लिए

ताकि काम हो जाए आसान

वे सुंदर दिखती है

मिट्टी के पाउडर से

भारी भरकम फावड़ा उठा कर

जी लेती है

ज़िंदगी हल्की फुल्की।


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