अधूरी ख़्वाहिशें
अधूरी ख़्वाहिशें
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विधाता छंद की मापनी में मुक्तक
मापनी ( 1222 - 1222 - 1222- 1222 )
अधूरी ख़्वाहिशों की हम सुनो, बुनियाद कहते हैं ।
किसी पल में अधूरी थी, जिन्हें हम याद करते हैं ।
चलो हम भूल जाएं, जो हुआ होना वही तो था ।
सबक हम सीख जाएं, क्यों अभी अफसोस करते हैं ।।
कभी खोया - कभी पाया कभी मैंने बहुत रोया ।
हमारी ख़्वाहिशें फिर भी रही, आँखें न संजोया ।
यही तो साधना है तप, यही तो जिंदगानी है ।
तपिश सहकर निखरते हैं, ख़्वाहिशें दिल ने पिरोया ।
हमें अनुभव दिलाने ही, ख़्वाहिशें आती-जाती हैं ।
समय से पूर्ण होती और, समय के पार जाती है ।
इसी में है समझदारी, यदि संतोष तुम कर लो ।
विधाता का विधान कभी नहीं, दुहराई जाती है ।
