STORYMIRROR

Dr. Akansha Rupa chachra

Others

4  

Dr. Akansha Rupa chachra

Others

आत्म विस्मृत

आत्म विस्मृत

1 min
280

भविष्य के प्रति


मेरा स्वच्छंद हृदय

मुक्त गगन में विचरने लगा

फिर अपनी चिन्ता छोड़

सकल विश्व की चिन्ता करने लगा!

आत्म विस्मृत हो

सोच कर भविष्य के प्रति

हो गया भयभीत

कितना सच है/कितना झूठ

फटने को हो ज्यों ज्वालामुखी

यूं हो रहा है प्रतीत

कोई देश, हड़पने को लालायित

दूसरे देश की भूमि

जन संहार के लिए भी उद्यत है

आधुनिक शस्त्रों से होकर लैश

युदधाभ्यास में रत है

फिर कहां होगी शान्ति और स्थिरता

युद्ध के परिणाम से हर कोई अवगत है?

बहादुरी और भीरूता

क्या शस्त्रों से मापी जाती है?

अब आगे मैं क्या कहूं

मुझे भी शर्म आती है!



Rate this content
Log in