आखिर.........क्यों है?!
आखिर.........क्यों है?!
हर गली कूचे शहर में मचा है यह कैसा महशर
रोज़ी रोटी की ना रही सिर्फ
अब जान बचाने की लगी भगदड़ क्यों है
मानता है तू खुदको महरूम खुदा की कुरबत से
हकीकत में है महरूम तू उसकी हिदायत से
यह जानकर भी बनता तू अनजान क्यों है
खुदा की रहमत की ना कि तूने कोई कद्र
देखले इस कुदरत का क्या किया तूने हश्र
उसकी कयामत का ना तुझे खौफ क्यों है
करके बद इरादे , नापाक हरकतें
कर नुमाइश अपनी खोखली ताकतें
ला रहा खुदपे ही तू आफ़तें क्यों है
औरो की खुशी तुझे ना लगे मुनासिब
मासूम अश्कों से है तू नावाकिफ
करने चला इस दुनिया को फनाह क्यों है
एक बार हो अपने ज़हन से मुखातिब
ना रहेगा तू तब दिलसे इतना मुफलिस
जानेगा तभी तू इतना इज़तरार क्यों है
करता नहीं इत्मीनान अपनी इबादत से
ऐतबार नहीं तुझको खुदा की हिफाज़त पे
मचाया हरतरफ बे वजह इतना कोहराम क्यों है
क्यों सौंप दी तेरे हाथो में मेंने कायनात
खुदा भी देखकर तुझे लगा है अब यह सोचने
आखिर इंसान अब ना रहा इंसान क्यों है।