आ गयी दशहरा की घड़ी
आ गयी दशहरा की घड़ी
आ गयी दशहरा की पावन घड़ी
मुश्किल अब पुतलो की बढ़ी।
बन कर राम रावण को जला रहे
क्या खुद के अंदर की बुराई को भी मिटा रहे ?
क्या वाकई हो रहा इस कलयुग मे रावण का अंत ?
बचा भी है यहा कोई राम जैसा संत ?
जगह जगह आजकल रावण का प्रहार है
घर से बहार निकलना ही दुष्वार है।
कही भ्रष्टाचार है,कही दूषव्यवहार है
कदम कदम पर लुटेरो का घर बार है।
आ रहे देखने लोग रावण दहन
सच को नही कर पायेगा कोई भी सहन।
इतनी भीड़ देख कर रावण रहा पुकार
आओ तुम भी मेरे साथ करो बुराई पर वार।
खत्म करो अपनी भी बुराई
अकेले मेरे लंका क्यों जले रहे हो भाई।