ये वर्ष 2020 सुन जरा
ये वर्ष 2020 सुन जरा
ऐ वर्ष२०२०...
तेरा भी शुक्रिया
तूने कराए अद्भुत अनुभव
संघर्षोंपरांत ही जीवन प्रस्फुटित होता है,
हे मन...
जानता है सब
फिर भी रोता है
तू जन्मा ही संघर्षों की बलिवेदी पर
बिना संघर्ष
न कोई जीवन उदित होता है।
तारीखों के दरवाजों पर खड़े
क्षणों को लिपिबद्ध करते कथानक....
मन के गहरे भंवर में कहीं डूबते, उतरते रहे
कुछ रिश्तों की जिल्द फ़टी,
कुछ के पन्ने धुंधले धुंधले
कभी धूप की तपिश मिली
कहीं छांव की ठंडक पाई...
कुछ दर्द के दस्तावेज सहेज कर
लाल कपड़ें में बांधकर रख दिए
कुछ मोरपंखी स्मृतियाँ जेहन में कहीं ठहर गई
कभी विरक्ति के भाव पर
मेरा अनश्वर प्रेम भारी...
मन की हठीली चुप्पी ने तोड़े कितने
ख्याबों के घरौंदे
तंद्रा टूटी तो आभास हुआ
ये अंतर्मन का विकृत आकार...
प्रतिदिन प्रतिपल घात लगाए
अनुमोदित करता निर्लिप्त, निर्बाध विचार
जीवन का आधार वेदना
जो खड़ी रहें हर पल मन के द्वार
वर्ष का क्या है आये जाए
विरक्ति ही मुक्ति का सच्चा आधार।
