विशाल पावन धरा
विशाल पावन धरा
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वो जज्बा कहाँ से लाऊँ
तेरे पे मैं जान न्योछावर कर जाऊं
मेरे वतन की मिटटी को शान से भर पाऊं
ये वतन तेरे लिए, हरबार कुर्बान हो जाऊं।
तूने दी पाँव रखने को धरती
मेरा सर हमेशा सलाम करती
ऊपर आसमान नीचे विशाल धरा
उसपर बहती कलरव करती धारा।
ना डाले कोई आँखे नापाक निगाह
हम को हो जाए उसका तुरंत आगाह
हम निकाल लेंगे वो दुश्मन की आँखे
फिर ना करे हिम्मत और मुड के देखे।
हम ना चाहे किसी की तसु जमीन
ओर ना करेंगे किसी के कदम तस्लीम
करे यकिन हम पर, हम मिट जाएंगे
पर उसके लिए तो कफ़न भी ना देंगे।
ना देश आज कल का है
ये तो आग का एक दरिया है
पहचानो तो पैगाम,दोस्ती का है
मर मिटने का, वतन परस्ती का है।
आओ लेले प्रण वचन रक्षा का
देशवासियों की ख़ुशी ओर सुरक्षा का
देश रहेगा और मिटटी की भीनी सुगंध
कोई कर ले कोशीष कितनी भी और प्रपंच!