तेरे बगैर ही अच्छे थे
तेरे बगैर ही अच्छे थे


यूँ ही नहीं, हम किसी की याद में खो जाते थे
बैठे बैठे ,नहीं हम पागल सा मुस्कुराते थे
नहीं तलाशते थे कोई ,साथी सफ़र का
था अकेला मुसाफ़िर मैं अपनी डगर का
एक कप चाय से, अपना इक अलग याराना था
बेवजह ,ना किसी के खयालों का आना जाना था
तुझसे इश्क है अभी भी, ये सबसे छुपाना पड़ता है
तू मिल जाए फिर किसी दिन, बार बार उसी गली जाना पड़ता है
अपनी ही पसंद थी जो ,वो भी मुझे अब नहीं भाती हैं
मेरी चौखट पे हर शाम ,तेरी यादें चली आती हैं
याद आते हैं वो दिन, जब मैं अकेला खुश हुआ करता था
आखिर ये कैसा प्यार था, जो हर दिन जताना पड़ता था
तुझसे मिलने से पहले, इश्क के ये राज़ लगते सच्चे थे
क्या मुसीबत है जनाब, हम तेरे बगैर ही अच्छे थे