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लिखी हैं गज़लें जितनी भी तेरे लिए सब सुनाना चाहती हूं। लिखी हैं गज़लें जितनी भी तेरे लिए सब सुनाना चाहती हूं।
कभी डॉक्टर, कभी अध्यापक तो कभी मेरा अलार्म बन जाती है कभी डॉक्टर, कभी अध्यापक तो कभी मेरा अलार्म बन जाती है
छूती हूं तुझे भी मैं और तेरे साथ लगे पेड़ के पत्तों को भी छूती हूं तुझे भी मैं और तेरे साथ लगे पेड़ के पत्तों को भी
मेरा गम, अकेलापन सब छूट गया मेरा गम, अकेलापन सब छूट गया
कि अपने यार को मैं कितना चाहती हूं चांद सोचता है के यह दोनों कितने नादान हैं। कि अपने यार को मैं कितना चाहती हूं चांद सोचता है के यह दोनों कितने नादान ह...
बड़ा तड़पा रही है हां मुझे तेरी याद आ रही है। बड़ा तड़पा रही है हां मुझे तेरी याद आ रही है।
जिसका कोई किनारा नहीं होता मेरी मोहब्ब्त वो कश्ती थी... जिसका कोई किनारा नहीं होता मेरी मोहब्ब्त वो कश्ती थी...