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घर की भाषा

घर की भाषा

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इंग्लिश स्कूल में एल.के.जी में बच्चों का एडमिशन-इंटरव्यू चल रहा था। अपने चार साल के बच्चों के साथ अभिभावक बारामदे में लाइन लगाकर बैठे थे। अंदर कक्षा में टीचर बच्चों का इंटरव्यू ले रही थी। बब्लू अपनी मम्मी के साथ टीचर के सामने था। 

टीचर “व्हाट इज़ योर नेम?” 

बच्चा “माय नेम इज बब्लू चौधरी।” 

“गुड! एंड वेयर डू यू लिव?”

 बच्चे ने अपना पता भी अंग्रेजी में बता दिया। माँ बाप ने खूब रटाया जो  था! तुम्हारे एक  हाथ में कितनी उंगलियाँ हैं?

बच्चे ने कहा, फाइव। फाइव को हिंदी में क्या कहते हैं? 

बच्चा निस्सहाय हो गया। वह मदद के लिए अपनी माँ की ओर ताकने लगा। टीचर ने भी माँ की तरफ देखा। माँ ने बिन पूछे ही सफाई दी, “वो... हिंदी में हमने नहीं सिखाया... इसकी ज़रूरत ही नहीं समझी हमने! हिंदी तो घर की भाषा है, ये तो अपने आप ही सीख जाएगा!” 

यह सुन कर टीचर के अंदर कुछ खदबदाने लगा, वह जोर से बोलना चाहती थी, “हाँ हाँ हमारा यही रवैया रहा तो अपनी हिंदी एक दिन इन बच्चो की जुबान से भाग ही जायेगी! आज कल के बड़े बच्चों से भी पूछो कि फिफ्टी-नाइन, सिक्सटी- नाइन, फोर्टी-नाइन जैसे शब्दों के हिंदी क्या है, तो उन्हें नहीं आते!” पर उसे अगले ही क्षण अपने पद का ख्याल आ गया और वो तो इंग्लिश स्कूल की टीचर थी !” उसने अपने उद्गारों को सुला दिया और सिर्फ मुस्कुरा दी।


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