ऐसी इमानदारी

ऐसी इमानदारी

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लम्बे सफर के बाद मेरे सूटकेस का चेन टूट गया था। उसे मरम्मत कराने के लिए एक दूकान पर ले गई।

दुकानदार कुछ परिचित ही था। उसने कहा, “रख जाइए अभी भीड़ है, एक सप्ताह बाद आकर ले जाइएगा। मैं एक सप्ताह की जगह एक महीने बाद सूटकेस लेने गई।” दुकानदार ने सूटकेस लाकर टेबल पर मेरे  सामने रख दिया। मैंने सूटकेस का निरिक्षण किया। सब ठीक-ठाक बना था। मैंने पूछा, “कितने हुये?” उसने कहा “तीस रूपये”। मैंने आँखें फाड़ के उसे देखा, “तीस्स्स्स रूपये! सिर्फ एक चेन ही तो टूटा था !” उसने बड़ी शालीनता से कहा “जी और भी कुछ काम थे इसमें! हम आप से ज्यादा नहीं लेगें!” मैंने उससे मोल भाव किये पर वो नहीं माना। तब मैंने खिसियाते हुए उसके हाथ पर तीस रूपये डाल दिए और बैग के साथ बाहर जाने लगी। तभी वह अपने दराज से निकाल कर एक पैकेट मुझे थमाने लगा।मैंने पूछा, “ये क्या है?” उसने कहा, “ये सूटकेस के अंदर था।” पांच रूपये के नयी नोटों की एक गड्डी जिसे मैं भीतरी चेन में रख कर भूल गई थी...


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