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जड़

जड़

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गरीब संजना का पति अब इस दुनिया में नहीं है। उसे नशे की लत थी, अल्पायु में टीवी हो गयी और लिवर भी खराब हो गया था। पिछले साल ही चल बसा, अब वह चाहती है कि उसका एकमात्र पुत्र इन सब चीजों से बिलकुल दूर रहे। लेकिन इस बस्ती में रह कर ये सम्भव नहीं हो सकता था। पास पैसे भी नहीं थे, आखिर वह जाए तो जाए कहाँ? क्योंकि आज फिर से उसकी गरीब बस्ती के निकट एक दारू के अड्डे को लाइसेंस मिला है। बस्ती के औरत मर्द इसका विरोध जताने के लिए हंगामा कर रहे हैं। पर इनके हंगामे से क्या होने वाला? इनके पास पैसे रुपये तो हैं नहीं, जो इनकी बात कोई सुने। संजना को इस बात का इल्म है कि गरीबी और नशाखोरी का तो चोली दामन का सम्बन्ध है। शहरों में अक्सर हम गरीबों की बस्तियों, झोपड़पट्टियों में चरस, भांग, गांजा, हेरोइन, दारू बेची और खरीदी जाती है। हम गरीब घरों के किशोर और नौजवान लड़के बचपन से ही इस माहौल को देखते हैं। इसलिए ये इन्हें अपनाने में कोई संकोच नहीं करते। एक तो गरीबी, ऊपर से नशाखोरी, घर में कलह तो होना लाजमी है। यही वजह है कि गरीब, नशे की गिरफ्त में पड़ कर और गरीब हो जाता है, नशे का व्यापारी हमारी मेहनत की कमाई लूट कर अमीर बन जाता है। अशोक (पति ) भी दारू के पैसे के लिए बहुत  झगड़ता था मुझसे!


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