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आकाश से ऊपर

आकाश से ऊपर

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मानव के उद्गम के साथ पैदा हुआ मैं, मेरे माध्यम से ही हर सभ्यता फूली फली, परवान चढ़ी। सारे मनभावन , चटख रंग मेरे भृत्य और खूबसूरत दृश्य, पुष्प, शक्लें और आविष्कार मेरी जागीर ! दुनिया की हर भाषा मेरी ग़ुलाम कि उसको अर्थ देने वाले अक्षर मेरी मुट्ठी से निकले .... मेरे पास है कीमत, शोहरत और वैभव तथा शक्ति है गरीबी, मुफसिली और भूख अभाव में कभी खूबसूरती की खोज कर लेने की तो कभी द्रवित कर अश्रु निकाल लेने की क्षमता !

आदिकाल से ही इन्सान मुझपर आश्रित रहा, क्योंकि मैं तो उसकी हर सभ्यता के मूल में हूँ। मुझे कभी भित्तियों पर उकेरा गया तो कभी धातुओं पर उभारा गया.... कपड़े कागज़ रंगे, परदों पर छायाएँ पड़ीं और फिर सैटेलाइट से प्रक्षेपित किया गया। कभी नक्शा बन कर रास्ते दिखाता हूँ तो कभी किताबों में छप कर ज्ञानवर्धन के काम आता हूँ मैं। इतनी सारी नेमतों के बावजूद भी संपूर्ण नहीं हूँ मैं कि हमेशा मेरा दूसरा पहलू स्याह और अंधकार ही रहा है।


मैं मानव की ताकत हूँ, माध्यम हूँ हर अभिव्यक्ति का पर बेबस हूँ हर जीव जंतु, प्रकृति के हर कोप के समक्ष .... कि एक छोटा सा चूहा, चींटी, दीमक तक मेरे अस्तित्व को लील सकता है और अग्नि, वायु, जल, अनल, धरती जब चाहें, मेरे स्वरूप को समाप्त कर सकते है। चित्र हूँ मैं !



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