बाढ़ के बाद
बाढ़ के बाद
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धुली-धुली सी मिलीं सड़कें
पेड़ अधटूटे मिले।
किनारे कांप रहे हैं नदी के,
झोपड़ियाँ जैसे अपनी अस्मिता लुटा
चुकी हैं,
बह चुके बर्तनों का हिसाब लगाकर
रो रहे हैं मज़दूर।
बाढ़ आई थी
ले गई अपने साथ
कई लोगों की खुशियाँ
डूबी रही इतने दिनों तक
भगवान की मूरत भी।