किस्सा
किस्सा
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किस्सा तो मेरा कहा जाएगा
जब ये जगह छूट जाएगी।
यह कि मैंने नहीं परवाह की
दीवारों की
उनके कानों को मैंने बेकार समझा और प्रेम किया।
यह कि मैं
अपने में बहुत मस्त रहा
और फाके में रहते हुए
कहता रहा नये किस्से
उनके किरदारों के गले मिलता रहा।
मैंने हथेली को गर्म रेत पर रखा
मैं खेलता रहा जोखिम से
मैं कुछ ज़ब्त किताबें बांचता रहा।
बाँसुरी बजाई मैंने रात गए भी।
कुछ और बातें बनाई भी जाएंगी
मसलन वह शख्स़ ठीक नहीं था
या कि वह कुछ और नहीं हुआ यहाँ सिवाय इंसान होने के।
किस्सा तो मेरा भी दोहराया जाएगा यहाँ।