हिरोशिमा की याद
हिरोशिमा की याद
बचाऐ रखना ज़रूरी है
हिरोशिमा की याद
हिरोशिमा की याद ही रोकेगी
और हिरोशिमा होने से ।
इसलिऐ कहता हूँ
जले जिस्म पर
फफोलों के निशान
और खोपड़ी से
अचानक उखड़ गऐ बालों की
तस्वीरों को बार बार दिखाओ
उस चमक के बारे में लिखो
जिसने रौशनी नहीं
अँधेरा भर दिया था चारों ओर
उस काली बारिश के
चित्र बनाओ
जिसने खेतों में गेहूँ नहीं
कैंसर के पौधे उगाऐ थे
उस भट्ठी के बारे में बताओ
जिसके ताप से लोहा पिघल गया
लोग भूलते जा रहे हैं
हिरोशिमा की वह सुबह
जब घड़ी में 8.15 बजे थे
जब आसमान का सूरज
धरती के सूरज से हार गया था
भूलते जा रहे हैं लोग
उस चमक की बात
लाखों भट्ठियों के
एक साथ धधकने की बात
पत्थरों पर छपी
परछाईयों की बात
लोग भूलते जा रहे हैं।
भूलना उनका स्वभाव है!
भूलेंगे नहीं तो
जिन्दा कैसे रहेंगे ?
लेकिन जिन्हें नहीं मालूम
हिरोशिमा का सच
उन्हें कौन बताऐगा ?
जब हम नहीं रहेंगे
तब हमारे बे-ख़बर बच्चों को
कौन समझाऐगा
अणुबम की आग का मतलब ?
जल्दी ही हिरोशिमा और नागासाकी
शब्द भर रह जाऐंगे
उस महाविनाश का हाल बताने वाला
संजय भी जब चला जाऐगा
तब कोई कैसे जानेगा
कैसे बरसी थी आसमान से मौत
और अनगिनत लोग
एक बूँद पानी को तरसते
भाप बन उड़ गऐ थे।
कैसे जान पाऐंगे हमारे बच्चे
या बच्चों के बच्चे
कि आज हिरोशिमा की मोतोयासु नदी में
बहती रंग बिरंगी कन्दीलों में
जलती मोमबत्तियों की काँपती लो
उनके पूर्वजों की ऐंठती देह
की परछाइयाँ हैं।
इसीलिऐ कहता हूँ
बचाऐ रखना ज़रूरी है
हिरोशिमा की याद
यह याद ही रोकेगी
और हिरोशिमा होने से।