कैसे मर सकती हो तुम, सदा को !
कैसे मर सकती हो तुम, सदा को !
तुमने जीना चाहा था सदाको !
तुम्हारे दोस्तों ने भी
यही चाहा था कि,
तुम्हारी आँखों में पल रहा
जीवन का सपना
सच हो जाऐ
सभी बना रहे थे
कागज़ की सारसें
जबकि, तुम्हारी आँखों की चमक
धुँधलाती जा रही थी
अणुबम के विकीरण से
लगे असाध्य रोग के कारण
हज़ार सारसें बनाते बनाते
तुम गहरी नींद में सो गई थीं
पर तुम्हारे स्मारक पर लटकी
हजारों हजार सारसों की
रंग बिरंगी लड़ियों को देख
लगता है-तुम मर कर भी अमर हो सदा को!
तुम्हारे लिऐ
दुनिया के करोड़ों बच्चों का दिल
आज भी धड़कता है
विश्व-शान्ति के लिऐ
शान्ति-कपोत के पंखों की तरह
हाथ उठाऐ
खड़ी हो तुम अडिग
कैसे मर सकती हो तुम, सदा को !
