दिल बच्चा रह गया
दिल बच्चा रह गया
ज़िन्दगी की दौड़ में, तज़ुर्बा कच्चा ही रह गया,
हम सीख ना पाये फ़रेब और दिल बच्चा रह गया|
बढ़ती हुई उम्र झूठ और बचपन ही सच्चा रह गया,
हम सीख ना पाये फरेब और दिल मेरा बच्चा रह गया|
बचपन में जहाँ तहाँ हँस लेते थे, जहाँ तहाँ रो लेते थे,
पर अब मुस्कुराने को तमीज़ चाहिऐ और आँसुओं को तन्हाई,
हम भी मुस्कुराते थे कभी बेपरवाह अंदाज़ से,
देखा है आज ख़ुद को पुरानी तस्वीरों में,
चलो मुस्कुराने की वजह ढूँढते है,
ज़िन्दगी तुम हमे ढूँढो हम तुम्हे ढूँढते है|
मुस्कुराने को तमीज चाहिऐ, आज द्वेश क्लेश के बीच भी यह मन सच्चा रह गया,
हम सीख ना पाऐ फ़रेब और दिल मेरा बच्चा ही रह गया|
ज़िन्दगी आज प्रतियोगिता सी हो गई है,
दुसरों से खेलना एक प्रवृत्ति सी हो गई है|
मन भी अपना, तन भी अपना, वक़्त का हर क्षण भी अपना,
फिर भी ना जाने क्यों दुसरों की हुक़ूमत हम झेलते हैं?
इन सबको छोड़कर देखू तो लगता है,
माँ के आँचल में कैद रहना ही सच्चा रह गया,
हम सीख ना पाये फ़रेब और दिल मेरा बच्चा ही रह गया||