फिर भी ना जाने क्यों दुसरों की हुक़ूमत हम झेलते हैं?इन सबको छोड़कर देखू तो लगता है,माँ के आँचल में कैद... फिर भी ना जाने क्यों दुसरों की हुक़ूमत हम झेलते हैं?इन सबको छोड़कर देखू तो लगता है...
माना कि मैं हर महफ़िल में मुस्कुराता हूँ, धोख़ेबाज़ हूँ दरअसल ग़मों को छुपाता हूँ! माना कि मैं हर महफ़िल में मुस्कुराता हूँ, धोख़ेबाज़ हूँ दरअसल ग़मों को छुपाता हूँ...