क्योंकि शायद पापा
क्योंकि शायद पापा
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मेरे पास अक्सर लफ्ज कम पड़ जाते हैं,
जब भी बात मैं उनसे करता हूँ,
फिर भी मन की हर बात वो सुन लेते हैं
क्योंकि शायद पापा,
लफ्जों से नहीं रूह से बात करते हैं।
पता नहींं कैसे,
बिना बताये ही जरूरतें मेरी,
पहले ही सारी पूरी कर देते हैं
क्योंकि शायद पापा,
लफ्जों से नहीं रूह से बात करते हैं।
हो गर मुसीबतें हजार मुझ पे,
हर दम साये से साथ खड़े वो रहते हैं ..
शायद.. इसे ही पिता का प्यार कहते हैं,
क्योंकि पापा,
लफ्जों से नहीं रूह से बात करते हैं।
मेरी छोटी सी ख़ुशी के लिए
सब कुछ सेह जाते हैं पापा,
फिर भी कह कर प्यार, नहीं जताते पापा
क्योंकि शायद पापा,
लफ्जों से नहीं रूह से बात करते हैं।