आज फिर.......
आज फिर.......
ज़िंदगी के घनघोर बादलों से हटने का मन करता हैं,
मग्न पंछी-सा आसमां मे उड़ने का मन करता हैं,
एक्सेल, वर्ड की जगह, श्याम-पट्ट पर लिखने का मन करता है,
आज फिर 'सत्या' मैम का लेक्चर लेने का दिल करता हैंI
खुद के सवालों से आँखे चुराने का मन करता है,
टूटे हुए सपनों के तराने छिपाने का मन करता है,
वक़्त के थपेड़ो से निकल कर,
आज फिर 'सत्या' मैम की मार खाने का दिल करता हैंI
अनचाही राहों के वजूद से हटने का मन करता है,
पुरानी क़िताबो की कहानियों को फिर से जीने का मन करता हैं,
घर वापिस लौट कर ‘स्कूल बैग’ खोलने का मन करता हैं,
आज फिर 'सत्या' मैम का होमवर्क करने का दिल करता हैंI
प्रतियोगिता की कैद से रिहा होने का मन करता हैं,
लापरवाह किरदारों से जुदा होने का मन करता हैं,
तस्सवुर की हवाओं मे फिर से जीने का मन करता हैं,
आज फिर 'सत्या' मैम का प्यार करने का दिल करता हैंI