मुझे फिर से बॉर्डर पर जाना है
मुझे फिर से बॉर्डर पर जाना है
पापा आज एक बार अपने कांधे पर बिठा कर मुझे मेला दिखाओ ना,
मेरे सब यार आए........सबको देख पाऊँ ऐसे बिठलाओ ना.....
अब शायद तेरे झुके कांधो पर भारी हो गया हूँ,
पर तेरे कांधो को बेताब हो गया हूँ.........
इतरा रहा हूँ तेरे कांधो से दुनिया देख कर...
यार आए हैं सब लकड़ियाँ लेकर....
एक ज़वान की अपने पिता को ढांढस बंधाता साहस
तेरा साथ दे रहे हैं वो मुझे ले जाने में....
उमड़ा सबका प्यार मेरे जनाज़े में...
जय हिंद का घोष उठा ज़माने में.....
फूल नही मुझे शूल चाहिए दुश्मन के छाती पर,
झुके वो हमेशा इस देश की माटी पर,
अब उतार दो पापा,
आपके कांधे दुख गए होंगे,
इस विषम वेदना में आंसु सूख गए होंगे.....
माँ का रखना ख्याल, वो टुट गई होगी,
मेरी हीर भी दुपट्टे में छुप कर खूब रोई होगी,
बोलना उनको....मैं वही हूँ उनके साथ,
माँ की बाहो में और उसकी राहो में.....
मैं मिलता रहुंगा बार-बार....
अब कर दो पापा आज़ाद मुझे, आपको घर जाना है
कल मिट्टी बन सिमट कर फिर तेरी गोदी में आना है......
कहना माँ से.....अब फिर उस आँगन में बालक बन कर आना है.....
उसकी परवरिश में मुझे फिर से बॉर्डर पर जाना है.....