बच्चों का मन
बच्चों का मन
. बच्चों का मन
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बहुत ही आसान है
बच्चों की मन को समझना
पर..
समझना कौन चाहता है?
कभी हम
अपने तर्कों से
उन्हें खामोश कर देते है
तो कभी
अपने अधिकार से चुप
कभी अपना दंभ दिखाते है
तो कभी अहम
कभी कोशिश ही नही की
उनके मन की बात
समझने की
वो भी तो चाहते है
अपनी बात कहना
पर तजुर्बे और नासमझी का
तकाजा देकर
उन्हें चुप करा देते है
वो नन्हा मन भी
उङना चाहता है
अपने पंखो के साथ
बिखरना चाहता है
सदा ये भी तो नही
कि हम सही हो
फिर क्यूं
उनसे सदा सही की ही
उम्मीद की जाये
क्यूं आपने विचार ही
उन पर थोपे जाये
उङने दो उन्हें
खुले आकाश मे
स्वतन्त्र पंछी की तरह
विचरने दो उन्हें
स्वयं को
तभी मदमस्त होकर
वो जी पायेंगे
हम से ज्यादा
पाने की चाहत है उनमे
अपना लक्ष्य वो
खुद ही बना जायेंगे
पंछी है वो इसी डाल के
न सोचो ज्यादा
आखिर मुकाम मे तो
अपने आप इसी
अनुभव पर चले आयेंगे