वो कि वक़्त कब और कैसा करवट लेगा आप नहीं जान सकते हो। वो कि वक़्त कब और कैसा करवट लेगा आप नहीं जान सकते हो।
लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास लेखक : राजगुरू द. आगरकर अनुवाद : आ. चारुमति रामदास
उसके भीतर की कवयित्री जागृत हो गयी और उसकी स्वयं की लिखी पंक्तियाँ उसके जेहन में गूंज ग उसके भीतर की कवयित्री जागृत हो गयी और उसकी स्वयं की लिखी पंक्तियाँ उसके जेहन में...
उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है। उनके परिजनों को यह लग रहा था कि पक्षाघात के मेरा मानसिक संतुलन भी बिगड़ गया है।