वो सब्जी का थैला और कुछ यादें
वो सब्जी का थैला और कुछ यादें
दरवाजे में चाबी लगाकर रश्मि सब्जी का थैला लेकर फटाफट घर के अंदर घुसी और थैला नीचे जमीन पर रखकर दो मिनट साँस लेने के लिए वही डायनिंग की कुर्सी पर बैठ गयी....मन ही मन बुदबुदाते हुए खुद से बोली जल्दी से कपड़े तह कर देती हूँ फिर बच्चों के ट्यूशन से आने का समय हो जाएगा और कपड़े ऐसे ही बिखरे रह जाएंगे क्योंकि फिर बच्चों को आते ही कुछ ना कुछ खाने को चाहिए वो भी तो बनाना है।
कुर्सी से उठकर उसने सब्जी वाला थैला रसोई में रखा और कपड़ों को तह लगाने लगी साथ की साथ इस्त्री के कपड़े भी बीच में से अलग करने लगी....तह लगाते लगाते उसकी नज़र सामने की दीवार पर लगी उसके सास ससुर की माला टँगी तस्वीरों पर पड़ी...
रश्मि के ससुर का तो उसकी शादी से पहले ही देहांत हो चुका था पर रश्मि की सास को गुज़रे कुछ ही महीने हुए थे अभी....
रश्मि सोचने लगी कि जब सुमित्रा जी जिन्दा थीं तो कैसे सारा दिन आपस में बातें करते करते सारा काम आसानी से हो जाया करता...बोरियत नहीं होती थी.....ये कपड़े तह करना बाजार से सब्जी लाना ये सब सुमित्रा जी ही करती थीं..
कभी-कभी रश्मि कहती भी थी कि आप वजन कैसे उठाएंगी तो वो कहती अरे अभी बहुत जान है मुझमें और वैसे भी मैं कौन सा पैदल ले कर आती हूँ सब्जी....थैला भरते ही रिक्शा पकड़ लेती हूँ...और तुम्हें तो घर के और भी काम हैं मेरा क्या हैं मैं तो खाली बैठी रहती हूँ..
रश्मि सोच रही थी जब से सुमित्रा जी गयी हैं वो कितनी अकेली हो गयी हैं घर में, अक्षय काम पर चले जाते और दोनों बच्चे स्कूल फिर ट्यूशन और फिर समय बचा तो खुद ही में व्यस्त रहते थे बच्चे...रश्मि पूरा दिन अकेली सिर्फ काम में लगी रहती कोई बात करने बोलने वाला नहीं।
कहने को कुछ नहीं करती थीं सुमित्रा जी पर फिर भी घर के छोटे-छोटे काम जैसे सब्जी काटना और ये हरी सब्जियां जिन्हें साफ कर काटने में कितना समय लगता है वो सब कर देती थीं...शाम की चाय भी अपने आप बना लेतीं और रश्मि से भी पूछ लेती थी पीने के लिए। चाय उबलती इतने सारे मंजे धुले बरतन भी लगा देती थी जगह पर और फिर दोनों बैठकर चाय पीते और कुछ देर इधर-उधर की बातें भी हो जाती थी तो मन लगा रहता था अब चाय भी अकेले पीनी पड़ती है और कभी-कभी बनती ही नहीं थी अब तो...
इन्हीं सब बातों को सोचते सोचते रश्मि के कपड़े तह हो चुके थे...अब वो रसोई की तरफ़ बढ़ी और रसोई में रखा वो सब्जी का थैला देखकर उसकी आँखें भर आईं मानो जैसे वो सुमित्रा जी ही लाई हो और उसे सब्जियों के बढ़े हुए दामों की कहानी सुना रही हो....
दोस्तों अक्सर घर के बड़े-बुजुर्ग काम में हाथ तो बँटाते हैं पर वो काम दिखाई नहीं देते...वो घर पर होते हैं और कहीं जाना हो तो घर की चिंता नहीं रहती ...उनके घर में रहने से घर का खालीपन भरा रहता है....
रश्मि को भी सुमित्रा जी के जाने के बाद उनके किए कामों की अहमियत पता चल रही थी जिन कामों को उसने कभी काम में ही नहीं गिना वो काम उसे आज करना बहुत मुश्किल लगता था....
ये काम कहने भर को छोटे होते हैं पर हाथ बड़ा बँटाते हैं
सच है किसी भी इंसान और उसके काम की कीमत उसके जाने के बाद ही समझ आती है।
