विकाश! एक खोज
विकाश! एक खोज
"दोस्ती", यह एक ऐसा शब्द है जिसको हम पैसा से तोल नहीं सकते। दोस्त, मित्र, यार, बंधु, फ्रेंड्स, यह सब हर किसके जीवन में आते हैं। लेकिन यह शब्द का मतलब हर कोई नहीं समझ सकता है। अगर हम शब्दकोश से इसका मतलब खोजने जाए तो शायद इसके अर्थ में परिवर्तन हो सकता है मगर प्रैक्टिकल जीवन में इसका अर्थ अलग ही होता है। सच्चा मित्र वही होता है जो जीवन के हर मोड़ पर आपके साथ खड़ा हो। जीवन के हर मुश्किल परिस्थिति में आपके संग खड़ा हो और आपको सबसे बेहतर समझे वह सच्चा मित्र कहलाता है। ... जीवन में सभी को एक सच्चे साथी की ज़रूरत होती है। सच्चे दोस्त के साथ जितना प्यार होता है, उतनी लड़ाई भी होती है।
यह लगभग दो साल पहले की बात है। आयुष नामक एक लड़का जो की हाली में दसवीं कक्षा में उत्तीर्ण होकर बारहवीं कक्षा में प्रवेश किया था। वह चल पड़ा था एक अलग ही दुनिया की खोज में। जहां पे अलग अलग दोस्त, मित्र होंगे। अपनी पीछे की सारे यादें छोड़ नई यादें बनाने। शासन के पास एक प्राइवेट कॉलेज है, नाम है विकाश हायर सेकेण्डरी स्कूल, संबलपुर।
जून २०१९ का महीना था। शासन में ही एक हाई स्कूल (शासन हाई स्कूल, शासन, संबलपुर) से उत्तीर्ण होकर एक अच्छा सा कॉलेज की तलाश कर रहा था l उस एरिया में एक govt. कॉलेज था गंगाधर मेहर कॉलेज कम यूनिवर्सिटी जहाँ पे की आस पास के जिले के बहुत बच्चे पढ़ने आते थे। आयुष का सपना था की उस कॉलेज में पड़ना पर यह सब एक सपना ही हो गया। उसने अपनी पास ही विकाश कॉलेज में एडमिशन कर लिया तारीख ३, जुलाई महीना में। कॉलेज की एडमिशन इंचार्ज लोग घर में ही आकर एडमिशन कर लिए। एडमिशन के बस दो तीन दिन में ही कॉलेज की पढ़ाई आरंभ हो गया।आयुष अब एक नया दुनिया में प्रवेश करने के लिए बहुत बेताब था। ये दो दिन कैसे बीत गया पता ही नहीं चला।
जुलाई ७ , का दिन एक नया सूरज का आगमन हुआ आयुष के लिए। कॉलेज का पहला दिन। कनखिंडा नामक गाँव से लग भाग आठ दस बच्चे बहा पड़ते थे। अभिषेक प्रधान के साथ निकल गया आयुष रेडी होकर घर से कॉलेज की तरफ। कॉलेज के फ्रंट गेट से भीतर जाकर आयुष अपनी क्लासरूम में पहुंचा। बह सबसे पहले ही पहुंचा था उसके बाद सारे बच्चे आए। सारे स्टूडेंट लोग क्लास में आने में जो थोड़ा सा वक्त लगा उसमें आयुष बस ये सोच रहा था की - अब में क्या करूँ ? कहाँ पे बैठ जाऊं? किस के साथ दोस्ती करूँ ? सर मैडम लोग से क्या बोलूँ? और बहुत कुछ ।
पहले क्लास के अंदर तीन लंबे लंबे बच्चे आए नाम था अभिषेक पंडा, सोहम अग्रवाल और यश अग्रबला। उसके बाद और बहुत से लड़के लड़कियां आए। गलती से में उनके बैंच पर बैठ गया था क्योंकि वो सारे लोग होस्टल में रहते थे और आयुष से पहले के दिन श्याम में भी उस रूम में बैठ चुके थे। तभी उनमें से एक ने बोला यह हमारा बैंच है तुम दूसरे बैंच में जाकर बैठो। उस टाइम आयुष को अच्छे से हिंदी नहीं आता था, तो कुछ ना बोलकर उठकर चला गया। तभी इतने में क्लास टीचर आ गई श्रिया मैडम। सारे बच्चों खड़े होकर गुडमर्निन बोले वो भी बोला गुडमॉर्निंग। उसके बाद श्रिया मैडम ने सबसे अपना अपना इंट्रोडक्शन ( परिचय) पूछे। सब ने अपना नाम बताएं । फिर मैडम हँसी मजाक से अपना पहला क्लास लिए और क्लास खत्म हो गया। फिर एक के बाद एक सर आए और क्लास ली, इसी तरह से एक दिन बीत गया। उसके अगले दिन आयुष क्लास की लगभग सारे लोगों को पहचान गया ।तभी उसी दिन नरेश मेहर आया जो की शासन हाई स्कूल से ही उसका क्लासमेट था। अब यहाँ से असली खेल शुरू होता है। आयुष को अब नया नया दोस्त बनाना था। और ये सिर्फ आयुष की बात नहीं सबकी ही क्यों कि हर कोई अलग अलग जिला से आए थे पढ़ाई करने के लिए। वह बहुत सारे नया दोस्त बनाया जैसे की तिराज राज नायक उसका बेस्ट फ्रेंड था फिर उसी कड़ी में अभिषेक पंडा, अभिषेक मिश्रा, अभय सा, नरेश मेहर, यश, आयुष प्रधान, सौरभ, सहेजाद, दीपक, दिनेश, सुभम, आराधना, प्रज्ञा, आशा, इप्सिता, और बहुत सारे।
कुछ दिनों में सबसे अच्छी दोस्ती हो गई थी। सारे commere विभाग के सार मैडम लोग को भी वो अच्छे से पहचानने लगा था। राकेश सार, सुभाष सार, श्रिया मैडम, सिद्धांत सार, बिपिन सार, सिकन सार, गांगुली सार और प्रिंसिपल सार।
चार पांच दिन बीत गए फर आया weakly test का दिन परीक्षा अच्छे से हुआ और तभी निर्णय हुआ की क्लास की सबसे होनहार विद्यार्थी कौन कौन है।और सबको पता चलगाया की क्लास में तीन टॉपर ही जॉकी बराबरी का टक्कर रखते थे। पर आयुष टॉप 5 के अंदर आ जाता था। फिर दूसरी तीसरी और मंथली परिख्याएं हुए और वह फर्स्ट मंथली परीक्षा में टॉप 4 में आ गया । उस समय मेरिट लिस्ट कुछ इस तरह था पहले में आराधना मोहंती, दूसरे में प्रज्ञा पुजारी, और तीसरे में अभिषेक पंडा और चौथे में आयुष था लेकिन जो पाँचवाँ था उसका नाम अभय कु सा है। अभय सा सुंदरगढ़ जिले के रहने बाला थे। इन दिनों में आयुष और अभय के बीच टक्कर की मेरिट में बराबरी होती थी कभी आयुष तो कभी अभय चार नंबर में होते थे।
इस तरह दो महीना बीत गए। और तभी एक दिन आयुष और अभय के बीच झगड़ा हो गया किसी बात को ले कर और उसी दिन से बो दोनों के दोस्ती और गहराई हो गया। तिराज से कभी अनबन नहीं हुआ। बस दुःख इस बात का हे की आयुष hostler न होकर डेस्कोलर हो गया था। उसके हर दोस्त एक साथ होस्टल में थे और आयुष आपने घर में रहता था।
आयुष commerce stream में पड़ता था। हफ्ते में तीन दिन science के बच्चे लोगों के साथ बैठ कर odia क्लास करता था वहां भी उसके बहुत से दोस्त पड़ते थे एक साथ। बिपिन सार आयुष को बोल रखे थे की तू हमेशा आगे का बेंच में ही बैठेगा उसके साथ संबित और निहार बैठते थे। कॉमर्स से लगभग आठ दस बच्चे आते थे odia class में जैसे आराधना, प्रज्ञा, नरेश, अभिषेक मिश्रा, सुभम, और दो तीन जन।
यह कॉमर्स वाले बच्चों के लिया वरदान समान था शायद साइंस बच्चों के भाग्य में नहीं था। राकेश कुमार शर्मा सार जो की हर मुश्किल और खुशी, दुःख के बीच हर बच्चे के साथ खड़े रहेतेथे। हर बच्चे के हर छोटी से छोटी मुसीबत में मदद करते थे। चाहे आधी रात ही क्यू नही। कॉमर्स के हर टीचर जैसे की सुभाष मिश्र सर, सिद्धांत मोहंती सर, बिजन सर, श्रिया मैडम, गांगुली सर, बिपिन सर, बारीक सर, सीकन सर सारे टीचर हमेशा फ्रैंडली बिहेवीइयर
करते थे।
आयुष हमेशा पंडा को अपना मेंटर ही मानता था। क्योंकि वो मुश्किल से मुश्किल सवाल का हल निकालना में मदद करता था।
इसी तरह दो साल बीत गया। और आयुष अपना इसी तरह फ्रेंड्स की तलाश में कॉलेज से यूनिवर्सिटी और हायर स्टडीज में निकल गया।
