वड़वानल - 28

वड़वानल - 28

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दत्त को जब वापस सेल में धकेला गया तो सूर्यास्त हो चुका था । छह–सात घण्टे लगातार खड़े रहने से पैरों में गोले आ गए थे । डगमगाते पैरों से ही वह सेल में गया । सेल के दरवाजे चरमराते हुए बन्द हो गए । सेन्ट्री ने सेल के दरवाज़े पर  ताला  मारा  और  बार–बार  खींचकर  यह  यकीन  कर लिया कि वह ठीक से बन्द हो गया है ।

धीरे–धीरे अँधेरा घिर आया । दीवार पर लगा बिजली के बल्ब का स्विच ऑन था, मगर बल्ब नहीं जल रहा था । उसका ध्यान  छत की ओर गया । वहाँ  एक सन्दर्भहीन तार लटक रहा था ।

‘‘मतलब, आज की रात अँधेरे में गुज़ारनी होगी!’’  वह अपने आप से बुदबुदाया ।

‘‘यह किंग की ही चाल होगी । रात के अँधेरे में अकेलापन... दबाव बढ़ाने वाला... उसे क्या लगता है,  कि मैं घुटने टेक दूँगा ? शरण जाऊँगा ?  ख़्वाब  है, ख़्वाब...’’

खाने की थाली आई । उसका खाने का मन ही नहीं था, बैठने से उकता रहा था इसलिए फर्श पर लेट गया ।

‘‘यह  तो  ठीक  है  कि  ठण्ड  नहीं  है; वरना हड्डियाँ जम जातीं ।’’  उसने  सोने की कोशिश की । आँखें बन्द कर लीं, करवट बदली, मगर नींद आने का नाम नहीं ले रही थी । दिमाग में विचारों का ताण्डव हो रहा था । सवालों के छोटे–छोटे अंकुर मन में उग आए थे ।

‘‘मदन, गुरु, खान, दास क्या कर रहे होंगे ? क्या उन्होंने कार्रवाई शुरू कर दी होगी! क्या करने का विचार किया होगा ? या हाथ–पैर डाले बैठे होंगे ? यदि उन्होंने  कोई  भी  कार्रवाई  नहीं  की  तो...मेरी लड़ाई एकाकी ही... उनकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ मैंने आचरण किया इसलिए मुझे अपने से दूर तो नहीं कर देंगे ?’’

इस ख़याल से उसे शर्म आई । ‘मार्ग भिन्न हुआ तो भी ध्येय तो एक ही है । वे मुझे दूर नहीं धकेलेंगे ।’ उसके दिल ने गवाही दी । ‘यदि मेरे इस कारनामे का घर में पता चला तो ? यदि नौसेना से निकाल दिया तो गाँव में जाकर करूँगा क्या ? वहाँ का बदरंग, जर्जर जीवन फिर से...’ सिर्फ इस ख़याल से ही वह सिहर उठा ।

‘‘अब    जिधर    भी    जाऊँगा,    वहाँ    के    जीवन    में    तूफान    लाऊँगा,    दावानल जलाऊँगा, यह असिधारा व्रत अब छोडूँगा नहीं । लड़ता ही रहूँगा, बिलकुल अन्त तक,   आज़ादी मिलने तक   ‘करेंगे   या   मरेंगे’ ।’’

कितनी ही देर तक वह विचार करता रहा । पहरेदारों की ड्यूटी बदल गई और उसे समझ में आया कि सुबह के चार बजे हैं ।

‘‘क्या  चाहिए,  पानी ?’’

दास की आवाज पहचान गया दत्त और बोला, ‘‘हाँ भाई, बड़ी प्यास लगी है । एक गिलास पानी पिला दो!’’

दास   दरवाजे   के   पास   रखे   एक   घड़े   से   पानी   लेकर   दत्त   के   पास   गया,   ‘‘इतनी रात को पानी क्यों पी रहे हो ?’’ चिड़चिड़ाते हुए उसने सलाखों वाले दरवाज़े से मग आगे कर दिया और साथ में एक छोटी–सी चिट्ठी दत्त के हाथ में थमा दी ।

शेरसिंह  द्वारा  दी  गई  सूचनाएँ  दत्त  तक  पहुँच  गई ।  दत्त  समझ  गया  कि  वह  अकेला नहीं है । सब उसके साथ हैं और इसी राहत की भावना के वश उसे कब नींद आ गई, पता ही नहीं चला ।

 

 सुबह गुरु, खान और मदन ‘फॉलिन’ के लिए निकलने ही वाले थे कि स्टोर–असिस्टेंट जोरावर सिंह ने गुरु को   आवाज़ दी ।

‘‘की  गल ?’’  गुरु  ने  पूछा ।

जोरावर गुरु के निकट आया । इधर–उधर देखते हुए पेट के पास छिपाकर रखा   हुआ   अखबार   निकालते   हुए वह गुरु के कान में फुसफुसाते हुए बोला,   ‘‘सुबह फ्रेश राशन लाने के लिए कुर्ला डिपो गया था । वहाँ आज का अखबार देखा और तेरे लिए ले आया ।’’

‘‘क्यों,  ऐसा  क्या  है  इस  अख़बार  में ?’’  गुरु  ने  पूछा ।

‘‘अरे,   दत्त की गिरफ़्तारी की खबर,   फोटो समेत,   आई   है ।’’

ख़बर विस्तार से थी । दत्त को किसने पकड़ा, कौन–कौन से नारे लिखे गए थे, पोस्टर्स पर क्या लिखा था - यह सब विस्तारपूर्वक दिया गया था । इस ख़बर को पढ़कर तीनों को अच्छा लगा था।

 ‘‘ख़बर छप गई यह अच्छा हुआ । कोई सिविलियन अवश्य ही हमारे साथ है ।’’  गुरु  ने  समाधानपूर्वक  कहा ।

‘‘सेना के बाहर के लोगों की यह गलतफ़हमी कि सेना में सब कुछ ठीक–ठाक है,   दूर हो जाएगी’’,   मदन   ने   कहा ।

‘‘आज  का  यह  अख़बार  पूरे  देश  में  जाएगा  और  यह  ख़बर  नेताओं  की नज़र में ज़रूर आएगी और फिर वे भी हमें समर्थन देंगे । राष्ट्रवादी ताकतों को हमारे पीछे खड़ा करेंगे । लोगों का  समर्थन  मिलेगा  और  हमारा  विद्रोह  ज़रूर सफल होगा ।’’   खान   अपनी   खुशी   छिपा   नहीं   पा   रहा   था ।

‘‘अब   हमें   अन्य   जहाजों   के   सैनिकों   से   सम्पर्क   स्थापित   करना   चाहिए ।   आज ही  मैं  सभी  जहाजों  और  बेसों  को  दत्त  की  गिरफ्तारी  के  बारे  में  सूचित  करता हूँ ।’’  मदन  ने  कहा ।

दोपहर  को  ‘नर्मदा’  से  कुट्टी  गुरु  से  मिलने आया था । दोनों एक–दूसरे को सिर्फ पहचानते थे । गुरु को इस बात की कोई कल्पना नहीं थी कि कुट्टी किस विचारधारा का है । मगर कुट्टी को आज़ाद हिन्दुस्तानी और गुरु के बारे में मालूम  था ।

‘‘आज की ख़बर पढ़ी ? दत्त ने वाकई में कमाल कर दिया!’’ गुरु को एक ओर   ले   जाकर   कुट्टी   ने   कहा ।

‘‘दत्त पागल था । मेरा उससे क्या लेना–देना ?’’ गुरु ने उसे झटक दिया ।

‘‘तेरा क्या लेना–देना? अच्छे दोस्त हो! मुसीबत में भाग जाने वाले! अरे, वहाँ वह देश की आज़ादी के लिए फाँसी पर लटकने की तैयारी कर रहा है और तुम लोग उसे दूर हटा रहे हो ?’’   कुट्टी   को   गुस्सा   आ   गया ।

‘‘अरे, वह अकेला क्या कर सकता है । मुँह फूटने तक मार जरूर खायेगा, क्या   फायदा   होगा   इससे ?’’   गुरु   कुट्टी   को   परख   रहा   था ।

‘‘मुर्दार हो! अकेला है वो! अरे, अकेला कैसे है ? समय आया ना, तो ‘नर्मदा’ के पचासेक सैनिक उसके साथ खड़े हो   जाएँगे ।’’

‘‘उसे वहाँ मरने दो और तुम उचित समय की राह देखते रहो!’’ गुरु ने हँसते  हुए  कहा ।

‘‘तू है पक्का! तेरे बारे में जो सुना था वह सही था । इस मामले में तू बाप पर भी भरोसा नहीं करता । मुझ पर तुझे यकीन नहीं, इसीलिए तू मुझे टाल रहा है । तुझे क्या लगता है, क्या हमारे दिल में परिस्थिति के बारे में गुस्सा नहीं है ?  देश  के  बारे  में,  आजादी  के  बारे  में  कोई  आस्था  नहीं  है ?  तुझे  मालूम  है,  ‘नर्मदा’ में भी पोस्टर्स चिपकाए गए थे । उसका बोलबाला नहीं हुआ । ये पोस्टर्स मैंने   चिपकाए थे ।’’   कुट्टी की आवाज़  ऊँची हो गई थी।

‘‘शान्त हो जाओ, पूरा यकीन जब तक न हो जाए, तब तक दत्त के बारे में किसी से भी, कुछ भी नहीं कहेंगे, ऐसा निर्णय हमने लिया है ।’’ गुरु ने कहा ।

‘‘ठीक है तुम्हारी बात,  मगर हमें एक होना चाहिए और इसके लिए एक–दूसरे को खोज निकालना चाहिए...’’  कुट्टी  कह  रहा  था ।  वे  बड़ी  देर  तक  ‘नर्मदा’ के   तथा   अन्य   जहाजों   के   साथियों   के   बारे   में   बातें   करते   रहे ।

 

 रियर एडमिरल रॉटरे ने दिल्ली में फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग रॉयल इंडियन नेवी, वाइस एडमिरल गॉडफ्रे से सम्पर्क करके उन्हें ‘तलवार’ पर घटित घटनाओं की जानकारी दी थी । गॉडफ्रे ने जाँच–समिति    गठित करने की सलाह दी; बल्कि जाँच–समिति  के अधिकारियों  के नाम भी उसी ने बताए ।  इस  समिति  में  ‘तलवार’ से  कोई  नहीं  था ।  जाँच–समिति  में  चार  अधिकारी  थे । दो  हिन्दुस्तानी  और दो अंग्रेज़ । रियर एडमिरल कोलिन्स इस समिति का अध्यक्ष था । कैप्टेन पार्कर नामक अंग्रेज़ी अफसर के साथ कमाण्डर खन्ना और कमाण्डर यादव - ये दो हिन्दुस्तानी अधिकारी  थे ।  कमाण्डर खन्ना दुभाषिये का काम करने वाला था । दत्त की अलमारी से  मिली  डायरियाँ  और  काग़ज़ात से मिले सबूत वह प्रस्तुत करने वाला था ।

दत्त को  आठ  बजे  इन्क्वायरी रूम की ओर ले जाया गया । जाँच  साढ़े  आठ

बजे आरम्भ होने वाली थी । वातावरण का दबाव डालने के लिए  उसे  आधा  घण्टा

इन्तजार  करवाया गया ।

‘शेरसिंह की सलाह के अनुसार सारे आरोप मान्य करना है,  मगर खुलासा नहीं करना है । मालूम नहीं, याद नहीं––– ऐसे ही जवाब देना है ।’ दत्त सोच रहा था । ‘कल किंग को जैसे धक्के दिये थे, वैसे ही आज जाँच समिति को भी देना है... ज्यादा–से–ज्यादा क्या कर लेंगे ? फाँसी तो नहीं ना देंगे... और दी तो दी । सैनिक  भड़क  उठेंगे...’  

आठ बजकर पच्चीस मिनट पर जाँच–समिति के सदस्य इन्क्वायरी रूम में आए । अपनी–अपनी जगह पर बैठने  के  बाद  कोलिन्स  ने  सदस्यों  को  जाँच–समिति के कार्यक्षेत्र और समिति के अधिकारों के बारे में   जानकारी दी और दत्त को हाज़िर करने का हुक्म दिया ।

दत्त बड़े रोब से इन्क्वायरी रूम में आया । उसके मन पर किसी भी तरह का दबाव नहीं था । मन विचलित नहीं  था । वह शान्त प्रतीत हो रहा था । उसका ध्यान मेज़ पर रखे कागज़ों और डायरियों की ओर गया ।

‘बेकार ही में डायरी लिखने की आदत डाल ली,’  वह अपने आप से बुदबुदाया, ‘यह तो खुशकिस्मती है कि उसमें नाम स्पष्ट नहीं लिखे हैं; जो हैं वे सांकेतिक भाषा में हैं, अन्य प्रविष्टियाँ भी वैसी ही हैं ।’

''Read out the charges.'' कोलिन्स  ने  पार्कर  को  हुक्म  दिया ।

''Dutt, leading telegraphist, official No. 6018, was absent from the place of duty on the second day of February one thousand nine hundred forty six, did behave arrogantly and disobeyed his seniors. Did carry out the acts which are included in mutiny. And appealed other sailors to join the mutiny...'' पार्कर आरोप पढ़ रहा था । इन्क्वायरी रूम में खामोशी छाई थी ।

‘इतने सारे आरोपों का मतलब है उम्रकैद या फाँसी...  कम से कम आठ–दस सालों का सश्रम कारावास तो होगा ही होगा... आरोप मान लूँ ? जो सरकार...’ उसने मन में  विचार किया ।

‘‘क्या तुम आरोप स्वीकार करते हो ?’’   पार्कर ने पूछा । दत्त हँस पड़ा, ‘‘जिस सरकार को मैं नहीं मानता उस सरकार द्वारा लगाये गए आरोपों को मैं स्वीकार कर लूँगा,  यह  आपने सोच कैसे लिया ?’’ दत्त ने सवाल किया ।

‘‘हमें प्रतिप्रश्न नहीं चाहिए ।’’ कोलिन्स की आवाज में धमकी थी । ‘‘यह जाँच  समिति  है - यह  याद  रखो  और  उसी  प्रकार  बर्ताव  करो,  पूछे  गए  सवालों के जवाब   दो । तुम्हें ये आरोप  मान्य हैं ?’’

दत्त   ने   पलभर   सोचा   और   जवाब   दिया,   ‘‘सारे   आरोप   मान्य   हैं ।’’

''That's good.'' कोलिन्स को मन ही मन खुशी हो रही थी, ''You may sit down now.'' एक स्टूल की तरफ इशारा करते हुए उसने कहा ।

दत्त स्टूल पर बैठ गया । स्टूल इतना ऊँचा था कि दत्त के पैर ज़मीन पर टिक नहीं रहे थे । करीब–करीब हवा में बैठा था । वह स्टूल ऐसी जगह पर रखा था कि वहाँ बैठने से चेहरे पर प्रखर प्रकाश आ रहा था ।  इस  कारण  दत्त के चेहरे के बिलकुल सूक्ष्म भाव भी स्पष्ट नजर आ रहे थे । उस कमरे का वातावरण ही  ऐसा बनाया गया था कि एक मानसिक दबाव उत्पन्न हो जाए ।

‘‘ये  पोस्टर्स तुम्हारे  पास कहाँ से आए ?’’   कमाण्डर  खन्ना ने  पूछा ।

‘‘मैंने  खुद  बनाये हैं ।’’

 ‘‘शहर  में  भी  ऐसे  ही  पोस्टर्स  लगे  हैं । कैसे  कह  सकते  हो  कि  ये  उनमें से ही नहीं हैं ?  दोनों  पोस्टर्स  की  भाषा  एक  समान  क्यों  है ?’’  पार्कर  ने  पूछा ।

‘‘हमारी भावनाएँ एक हैं , इसीलिए  भाषा  एक  है । अगर आपको यकीन नहीं   हो   रहा   हो   तो   बिलकुल   ऐसा   ही पोस्टर मैं अभी,  इसी पल तैयार करके   दिखाता हूँ, जिससे आपको विश्वास हो जाए, और अगर चाहें तो आप उसे यहीं चिपका सकते  हैं,  जिससे  समानता  समझ  में  आ  जाए ।’’  दत्त  के  चेहरे  पर  व्यंग्य  था ।

''Leading telegraphist Dutt, be serious, you are facing the board of enquiry. This is the last warning for you !'' कोलिन्स  ने  धमकाया ।

दत्त सिर्फ हँसा । उसका उद्देश्य सफल  हो रहा था ।

‘‘इस पोस्टर की इबारत सरकार विरोधी   है यह तुम समझते   हो ?’’

‘‘ये पोस्टर मैंने ही तैयार किया है । इसका एक एक शब्द मैंने ही सोचा और उन्हें सोचते हुए वह सरकार विरोधी हो इस बात का पूरा ख़याल रखा है,’’ दत्त अडिग था ।

दत्त को हर पोस्टर दिखाया जा रहा था और एक ही सवाल अलग–अलग तरह से पूछा जा रहा था ।

‘‘ये   सारे   पोस्टर्स   तुमने   ही   बनाए   हैं ?’’

‘‘हाँ’’, दत्त ने  जवाब दिया ।

‘‘तुम्हें  एक पोस्टर  बनाने  में  कितना  समय  लगा   था ?’’

‘‘ये  पोस्टर दोबारा बनाकर दिखाओ, कहे अनुसार पाँच मिनट में ।’’

दत्त ने पोस्टर तैयार करके दिखा दिया, तब कमाण्डर खन्ना ने पूछा,   ‘‘अभी

तुमने  जो  शब्द Brothers लिखा  है,  वह  पोस्टर  में  लिखे Brothers से अलग लग   रहा   है । इस  पोस्टर  को  लिखने  में तुम्हारी किसने 

सहायता की ?’’

‘‘सारे पोस्टर्स मैंने खुद ही लिखे हैं ।  मनोदशा  में  अन्तर  होने  के  कारण लिखाई में फर्क आ गया है । मेरी किसी ने भी मदद नहीं की है ।’’ दत्त शान्ति से   जवाब   दे   रहा   था ।

वहाँ बोले गए हर शब्द को नोट करने के लिए एक स्टेनो नियुक्त किया गया था । उसके द्वारा लिखा गया हर  शब्द टाइप हो रहा था और उसकी एक–एक प्रति हर अधिकारी को दी जा रही थी । दत्त के जवाबों के फर्क को नोट किया जा   रहा   था ।

तीव्र  प्रकाश  के  कारण  दत्त  अस्वस्थ  हो  रहा  था ।  उसने  चिल्लाकर  कहा, ‘‘इस  बेस  में  पिछले  तीन  महीनों  में  ब्रिटिश  सरकार  के  विरुद्ध  जो  भी  पोस्टर्स चिपकाए  गए,  जो  भी  नारे  लिखे  गए  वह  सब  मैंने  अकेले  ने  किया  है ।  मुझे  इसका गर्व है, क्योंकि मेरा हर कदम देशप्रेम की भावना से उठाया गया था, देश की स्वतन्त्रता के लिए उठाया गया था और इस सबका   जो आप चाहें वह मूल्य चुकाने के लिए मैं तैयार हूँ । बिलकुल फाँसी भी!’’

''Don't get excited.'' कोलिन्स ने शान्ति से समझाया । ‘‘तुमसे केवल अपराध कबूल करवाना ही इस समिति का काम नहीं है, हमें इस अपराध की जड़ तक पहुँचना है । जब तक तुम सत्य नहीं बताओगे, अपने साथियों के नाम हमें नहीं बताओगे; हम तुम्हें छोड़ेंगे नहीं । बार–बार वही सवाल दुहराएँगे, मेंटल टॉर्चर  करेंगे ।  अगर  इस  सबको  टालना  चाहते  हो  तो  पूरी  बात  सही–सही  बता दो ।’’     अब     कोलिन्स     धमका     रहा     था ।     दत्त शान्त था ।उसे इसी बात का अन्देशा था ।

‘‘30 नवम्बर से लेकर तुम्हारे गिरफ्तार होने तक जो कुछ भी हुआ,  विस्तार से बताओ ।’’ पार्कर ने कहा, ‘‘याद रखो । तुम्हारा एक–एक शब्द नोट किया जा रहा है ।’’

दत्त, उसे जो भी याद आ रहा था, वह अपनी मनमर्जी से, बेतरतीबी से बता रहा था । उससे एक ही प्रश्न बार–बार पूछा जा रहा था और दत्त जान–बूझकर घटनाओं के क्रम को ऊपर–नीचे कर रहा था, समय बदल रहा था, उद्देश्य एक ही था,   समिति को हैरान करना ।

‘‘पहले तुम कहते हो कि नारे पहले लिखे; फिर तुम कहते हो कि पोस्टर्स पहले  चिपकाए; कभी कहते हो रात के  दस  बजे  शुरुआत  की; कभी कहते हो सुबह दो बजे शुरुआत की; ऐसा अन्तर क्यों ?’’   खन्ना ने पूछा ।

‘‘मैं गड़बड़ा गया हूँ । इसीलिए, हालाँकि मुझे सारी घटनाएँ याद हैं, मगर उनका क्रम और समय याद नहीं आ रहा ।’’   दत्त ने जवाब दिया ।

‘‘हम  तुम्हें  ऐसे  नहीं  छोड़ेंगे ।  तुम्हें  सब  कुछ  याद  करना  पड़ेगा ।’’  यादव ने डाँट पिलाते हुए कहा ।

अब सारे सदस्य प्रश्नों की बौछार करने के लिए तैयार हो गए । वे उसे सोचने के लिए समय ही नहीं देने वाले थे ।

‘‘तुम्हारे साथ कौन–कौन रहता था ?’’ खन्ना।

‘‘कोई नहीं । मैं अकेला ही था ।’’ दत्त।

‘‘तुम सारा सामान कहाँ रखते थे ?’’  पार्कर।

‘‘जहाँ जगह मिले, वहीं ।’’  दत्त।

‘‘मतलब, कहाँ ?’’  खन्ना।

 ‘‘शौचालय की बिगड़ी हुई टंकी में, अलमारी के पीछे; बिलकुल जहाँ जगह मिल जाए वहीं’’,   दत्त ।

‘‘इन   स्थानों   के   बारे   में   और   किसे   जानकारी   थी ?’’   कोलिन्स ।

‘‘सिर्फ मुझे ।’’

‘‘इस काम  के  लिए  ड्यूटी  छोड़कर  कितनी  बार  बाहर  आए ?’’  कोलिन्स ।

‘‘कई बार  गिना  नहीं ।’’  दत्त ।

‘‘तुम्हें सामान   लाकर देने वाले दो लोग थे, ये सही   है ?’’ खन्ना ।

‘‘मैं ही सामान लाता था ।’’ दत्त ।

‘‘कोई  पकड़  लेगा  इसका  डर  नहीं लगा ?’’  यादव ।

‘‘कौन पकड़ेगा ?  कोल में अकल की कमी थी और किंग का आत्मविश्वास झूठा था ।’’  दत्त ।

‘‘सीनियर्स के बारे में ऐसा बोलते हुए शर्म नहीं आती ?’’   खन्ना की आवाज़ में  चिढ़  थी ।

‘‘सच बात ही कह रहा हूँ और सच बोलने में किसी के बाप से नहीं डरता!’’ दत्त ।

‘‘तुम्हारे इन जवाबों पर समिति ने गौर किया है ।’’   इसके परिणाम बुरे होंगे ।’’   कोलिन्स ।

''I care a hang.'' दत्त ।

‘‘पूछे गए सवालों के सीधे और सही जवाब दो । हमें सत्य ढूँढ़ निकालना है ।’’   यादव ने गुस्से से कहा ।

‘‘मेरे जवाब सही ही हैं । तुम ढूँढो न, सच क्या है ।’’ दत्त भी चिढ़ गया था ।

इन्क्वायरी रूम का वातावरण गरम हो चला था । उसे ठण्डा करने के लिए कोलिन्स ने पाँच मिनट की  छुट्टी ली । रूम में  समिति के सदस्यों के लिए चाय–बिस्किट्स  आए; सिगार और सिगरेटें जलीं । गप्पें छँटने लगीं । मगर दत्त वैसे ही अटपटेपन   से   बैठा   रहा ।

‘‘1 जनवरी, 1945 को एस.बी. से मिला, ऐसा लिखा है । ये एस.बी. कौन है ?’’ खन्ना ने एक डायरी का पन्ना टटोलते हुए पूछा प्रश्नों का बौछार का यह संकेत   था ।

‘‘सत्येन बोस ।’’  दत्त ।

‘‘कहाँ रहता है वह ?’’  खन्ना ।

 ‘‘वी.टी. स्टेशन  पर ।’’

‘‘कौन है वह ?’’ यादव ।

‘‘हज्जाम साला,  हज्जाम है ।’’

‘‘उससे किसलिए मिले थे ?’’

‘‘दाढ़ी बनवाने के लिए ।’’

‘‘दोबारा कब मिले ?’’

‘‘जब दाढ़ी बढ़ गई तब ।’’

दत्त के इस जवाब से कोलिन्स को क्रोध आ गया । उसकी और समिति के सदस्यों की समझ में आ  गया  था  कि वह इस जाँच की ज़रा भी परवाह नहीं कर रहा है, सच को छुपाने की कोशिश कर रहा   है ।

‘‘दत्त, don't bullshit! सवालों का सम्मान करके उनके जवाब दो । सवालों का मज़ाक बनाकर मनमर्जी से जवाब    मत    दो । इसकी कीमत  तुम्हें  चुकानी पड़ेगी ।’’

कोलिन्स के शान्ति से कहे जा रहे हर शब्द में कठोरता थी ।

‘‘मुझे जो याद आ रहा है जैसा याद आ रहा है वही बता रहा हूँ ।’’ दत्त ने लीपापोती   की ।

‘‘तुम्हारी डायरी में लिखे गए ये आँकड़े कैसे हैं ?’’  पार्कर ‘‘दोस्तों की लम्बाई के, वज़न के....,

“ बस यूँ ही मज़ाक में लिख लिए थे ।’’

‘‘आर. वी.टी.   का क्या मतलब है ?’’

‘‘याद  नहीं ।’’



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