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Mahendra Pipakshtriya

Others

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Mahendra Pipakshtriya

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टूडेज चाणक्य भाग 2

टूडेज चाणक्य भाग 2

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सिकंदर को गए कुछ ही सेकंड बीते थे की अनिरुद्ध, ओम की तरफ जिज्ञासा भरी नजरों से देखते हुए बोला -" ये सिरफिरा क्या कहकर गया और तुम शुद्ध हिंदी क्यों बोल रहे थे? "

ओम मुस्कुराते हुए बोला - " यही की आज से हफ्तेभर बाद भारत आने वाली तुम्हारी पेंटिंग्स और मूर्तियां खतरे में है, वो उसे चुरा लेगा।" कहते हुए वह सोफे पर उस जगह बैठ गया जिस जगह थोड़ी ही देर पहले सिकंदर बैठा था, " और रही बात मेरे शुद्ध हिंदी बोलने की तो इसमें लिखा है की सिकंदर शाह हिंदी भाषा का धुर विरोधी और उर्दू का शायर है।" कहते हुए उसने अपने हाथ को सीधा करते हुए अपने मोबाइल की स्क्रीन अनिरुद्ध की तरफ घुमा दी।

अनिरुद्ध ने मोबाइल में एक नजर देखा और फिर अजीब सा मुंह बनाते हुए बोला, " तुम उसे चिढ़ा रहे थे ?"

ओम ने बाल सुलभ मुस्कान के साथ कहा, " नही मित्र मैं उसे उत्तेजित कर रहा था।" 

ओम ने बाए हाथ से अनिरुद्ध को अपने पास बैठने का इशारा करते हुए कहा, " क्योंकि उत्तेजना में लोग गलतियां जरूर करते हैं। "

अनिरुद्ध ने उसके पास बैठते हुए कहा, " इसका मतलब तुम उसे गंभीरता से ले रहे हो? " अनिरुद्ध , ओम की आंखों पर नजर जमाए हुए था।

"तुम्हे भी उसे गभीरता से लेना चाहिए मित्र।" ओम के शब्दों में भी काफी गंभीरता थी। उसने आगे कहना जारी रखा, " ये कोई सिरफिरा नही हैं, ये सिकंदर शाह हैं। बड़ी - बड़ी गवर्नमेंट सिक्योरिटी को भेद चुका है जिनके आगे हमारी कंपनी 'चाणक्य सिक्योरिटीज ' तो कुछ भी नही है।"

" तब तो उसे जेल की चार दिवारी के पीछे होना चाहिए।" अनिरुद्ध के इस प्रश्न पर ओम हस दिया।

ओम ने दांत दिखाते हुए कहा, " क्योंकि इस आदमी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं, इसका संरक्षक भी एक बड़ी पहुंची हुई हस्ती है और सबसे बड़ी बात , यह अपनी मुख्य योजना में किसी को भी शामिल नहीं करता हैं।"

" मतलब ! " अनिरुद्ध ने कहा।

ओम ने जवाब दिया, " मतलब यह की सिकंदर को छोड़कर उसकी मुख्य योजना के बारे में और कोई नहीं जानता होता है वह बाहरी सहायता काफी कम ही लेता है। कोई नही जानता वह चुराई हुई चीजे कहा छुपा कर रखता हैं, इसलिए उसका कोई भेदिया ढूंढना भी एक दुष्कर कार्य होता है।" 

" उसके घर में कोई गुप्त तहखाना होगा ।" अनिरुद्ध ने सुझाव दिया।

परंतु ओम ने उसे सिरे से ही नकार दिया । वह बोला, " ऐसा नहीं है, क्योंकि उसके घर पर कई बार रेड डाली गई परंतु कुछ नही मिला। वह उन चीजों को कही और छुपाता होगा।"

" तुमने ये सब जानकारी अभी अभी निकली है ?" अनिरुद्ध ,ओम को आश्चर्य भरी नजरो से देखते हुए बोला।

ओम जवाब में केवल उसे मुस्कुराते हुए देखता रहा।

" पर , पर...." अनिरुद्ध के दिमाग में कई सवाल एक साथ कौंध रहे थे," वो इन पुरानी चीजों को इकट्ठा करके करता क्या हैं? तुमने ही बताया कि उसका कोई म्यूजियम नही हैं।"

" कुछ लोग होते है जिन्हे हमारे प्यारे भारत की संस्कृति से नफरत है।" ओम की आवाज में गंभीरता थी , " वो नही चाहते की इस देश के लोग इसकी वास्तविक संस्कृति के बारे में जाने, उस पर गर्व करे। इसलिए वो उसे दबाने का प्रयास करते है, उसे छुपाए रखने में अपनी अपनी शक्ति लगाते हैं।"

" तुम्हे लगता है, वो उन्हे चुरा लेगा? " अनिरुद्ध की आवाज से चिंता झलक रही थी।

" मित्र मैं तुम्हे झूठी सांत्वना नही दूंगा।" ओम ने गंभीर मुद्रा में अनिरुद्ध की तरफ देखते हुए कहा, " निसंदेह वह कोई न कोई उपाय निकल लेगा उन पेंटिंग्स और मूर्तियों को चुराने का।"

" तो फिर हमें उन्हें सरकार को ही सौप देना चाहिए।" अनिरुद्ध ने चिंतित होते हुए कहा।

" सरकार को सौंपना होता तो हम इतना प्रपंच रचते ही नही मित्र।" ओम ने अनिरुद्ध की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और आगे बोलता रहा, " मित्र मैं यह मानता हूं की सरकार सबसे बड़ी लुटेरी होती है क्योंकि वह यह सब कानून बनाकर करती है। अगर ऐसा नही होता तो मंदिरों से लिए दिए गए धन का दुरुपयोग संस्कृति विभाग के रास्ते किसी कब्र या चर्च के जीर्णोद्धार में नहीं हो रहा होता।" ओम बिना रुके बोले जा रहा था, " क्या तुम्हे लगता है की सरकार उन प्राचीन वस्तुओ से उत्पन्न होने वाले अर्थ का उपयोग तुम्हारे गांव के विकास में करेगी, गांव के मंदिरों के जीर्णोद्धार में करेगी या वहां गुरुकुल का श्री गणेश करेगी। मुझे लगता है ,तुम्हे रमेश** को दिए अपने वचन को पुनः स्मरण करना चाहिए।"


" हां भाई, पर तुम इतनी शुद्ध हिंदी क्यों बोल रहे हो? ऊपर से मैं तो एनआरआई हूं।" अनिरुद्ध ने दयनीय होते हुए कहा।

" मेरी इच्छा।" ओम फिर मुस्कुराया, " इसकी आदत डाल लो मित्र , क्या पता मैं संस्कृत के श्लोक बोलने लगूं या इंग्लिश के फ्रेजेज या फिर गुजराती की भवाई भी ।"

" ठीक है, ठीक है, पर अब हमें करना क्या चाहिए? " अनिरुद्ध ने। चकराकर अपना सिर पकड़ते हुए बात को फिर से मुद्दे पर लाने का प्रयास किया।

" कुछ नही।" ओम के चेहरे की आभा ही कुछ और थी, " तुम अपनी सारी चिंताएं मुझ पर छोड़ दो, मैं तुम्हे हर चिंताओं से मुक्ति दूंगा।" 

" तुम गीता कोट कर रहे हो!" अनिरुद्ध ने अचरज के साथ कहा।

" श्री मद्भागवत गीता। " ओम ने अपने दोनो हाथ जोड़कर ऐसा मुंह बनाया जैसे उसे अनिरुद्ध का केवल 'गीता ' कहना पसंद नही आया।

" हां सॉरी , पर तुम कर रहे हो न?" अनिरुद्ध ने अपनी गलती मानते हुए पूछा।

" मित्र, अगर मैं श्री मद्भागवत गीता को quote करना छोड़ दूंगा तो कुछ भी प्रभावशाली नही बोल पाऊंगा।" ओम मुकुराया।

" ठीक है भाई, तुम्हारे पास कोई प्लान तो होगा ही।" अनिरुद्ध मुस्कुराते हुए बोला।

" अभी नहीं , परंतु कल प्रातःकाल को जरूर होगा।" कहते हुए वह दाहिनी ओर की सीढ़ियों की तरफ बढ़ चला। " मुझे अभी सोना है।" वह धीमे कदमों से सीढियां चढ़ते हुए ऊपर की ओर जाने लगा।

" अभी आठ बज रहे है!" अनिरुद्ध ने अपनी आवाज को ऊंचा बढ़ाकर कहा ताकि वह ऊपर ओम तक पहुंच सके।

" जानता हूं।" कहते हुए ओम ऊपर की मंजिल के पहले ही कमरे में घुस गया।

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' धम - धम ' 

इस आवाज ने अनिरुद्ध को आधी रात को जगा दिया था। 

" रात को 1 बजे ये कैसी आवाज है।" अनिरुद्ध अपने बिस्तर के पास ही पड़े टेबल पर रखे अपने मोबाइल on कर देखते हुए बड़बड़ाया।

अगले ही पल वो तेजी से अपने बिस्तर से उतर अपने कमरे से बाहर की ओर निकल पड़ा।

" लगता है आवाज ऊपर से आ रही है, शायद ओम के कमरे से।" अपने आप से फुसफुसाता अनिरुद्ध हॉल से होते हुए दबे पाव सीढ़िया चढ़कर ऊपर की ओर बढ़ने लगा। यहां काफ़ी अंधेरा था और कुछ साफ दिखाई नही दे रहा था पर अनिरुद्ध अंदाजे से अपने कदम बढ़ाए जा रहा था।

अनिरुद्ध ओम के कमरे के पास पहुंच गया था । उसने बिना आवाज किए धीरे से दरवाजे को खोलना शुरू ही किया था की उस दरवाजे के पार एक आकृति उभरी।

" पकड़ लिया।"

" पकड़ लिया।"

दोनों ही एक दूसरे को पकड़ने के लिए जमीन पर गुत्थम गुत्था हो गए थे।

" ये तो ओम की आवाज है।" अनिरुद्ध ने चौंकते हुए कहा हालांकि वह अब भी उस आकृति को पकड़े हुए था।

" मैं ओम ही हूं अनिरुद्ध।" कहते हुए उस आकृति ने यानी ओम ने अनिरुद्ध पर से अपनी पकड़ छोड़ दी।

" तुम लाइट ऑन नहीं कर सकते थे क्या?" अनिरुद्ध ने खड़े होकर कहा उसने दीवार पर हाथ घुमाते हुए इलेक्ट्रिक बोर्ड को ढूंढने की कोशिश की।

" मैने सोचा कोई चोर है और लाइट on की तो वह भाग ....." ओम कुछ आगे कहता उससे पहले ही अनिरुद्ध ने लाइट का स्विच ऑन कर दिया।

ओम ने अपनी आंखों को चौंधिया जाने से बचाने के लिए अपने बाए हाथ से हल्का सा ढंक लिया।

" यानी तुम्हे भी किसी के पैरों आवाज सुनाई दी थी।" अनिरुद्ध ने कहा।

" भाई मुझे तो लगता है मुझे तुम्हारे पैरों की आवाज सुनाई दी होगी।" ओम ने अपनी आंखे मसलते हुए कहा।

" पर मुझे तो आवाज सुनाई दी थी।" अनिरुद्ध ने कहा।

ओम ने उबासी लेते हुए कहा, "भाई माना की पिछले छह महीनों से मैं नही बल्कि तुम इस घर में रह रहे हो पर मैं अपने घर को अच्छे से जानता हूं।मेरे इस घर में तुम्हारे पुस्तैनी बंगले** जैसा कुछ नहीं है।"


ओम अपने बिस्तर के पास रखे छोटे से टेबल की तरफ बढ़ा जिस पर उसका चश्मा रखा हुआ था, " वैसे इस घर में चुराने जैसा तो कुछ है ही नहीं ।" कहते हुए उसने अपना चश्मा पहन लिया, " सिक्योरिटी सर्विसेज का जानकर होते हुए भी मुझे अपने घर में सिक्योरिटी केमेराज पसंद नही हैं, फिर भी तुम्हारी इच्छा हो तो कल इस घर में लगवा देता हूं। "

ओम पुनः अनिरुद्ध की तरफ मुड़ गया, " तब तक तुम अपने कमरे में जाकर आराम से सो जाओ। " 

" हां हां, ठीक है।" अनिरुद्ध दरवाजे की तरफ मुड़ते हुए बोला, " शायद मेरे ही कान बज रहे होंगे।" 

अनिरुद्ध धीरे - धीरे चलते हुए ओम के कमरे से बाहर निकल गया।

ओम कुछ सोचते हुए उसे जाते हुए देखता रहा और फिर उसने अपने कमरे की लाइट का स्विच ऑफ कर दिया।

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